शुक्रवार, 29 मई 2015

आनकर आटा आनकर घीव

आनकर आटा आनकर घीव।
चाभ चाभ बाबा जीव।।
आ चाहें
बाभन जात, अन्हरिया रात
एक मुठी चिउरा पर धावल जात।
अइसन खाँची भर कहावत कही-कही के बाबा लोग के लालची, चालाक, हुँसियार, चालबाज, पेटमधवा, आनकर रोटी पर चोटी ऐंठे वाला सवर्ण आदि कहि-कहि के गरियावल गइल बा। आजुवो गाहे-बेगाहे कहि-कहि के ओह लोग के शोषक रूप उजागर कइल जाला।
सामाजिक व्यवस्था के जनम केंद्रित रूप हमरो नापसंद रहल बा। ना कबो भावल बा, ना भवेल आ ना भा सकेला, बाकिर जाति केंद्रित मुहावरा गुदगुदावेला त कबो सोचहुँ पर विवश क देला।
एही विचार में जब ई कहल जाला कि बाबा लोग बड़ा छुआछूत मनेला त के तरे? का ओह बेरवा एक मुट्ठी चिउरा के कहावतवा झूठ हो जाला। तब त ई लागेला कि तब्बो बाबा लोग अक्षर के सेवक रहल। विद्या के उपासना से ओह लोग के पता रहे कि सामाजिक व्यवस्था कइसन होखे के चाहीं। सामाजिक एकरूपता आ समरसता खातीर समाज के सबसे श्रेष्ठ कहाये वाला जाति या त छुआछूत के बाँध तुरि के केहू घरे  जा के चाभे लागेला नाही त ऊ सवर्ण भइला के दम्भ में ऊ अन्हरिया रात में धावल के तरे जाइत?
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- केशव मोहन पाण्डेय

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