मंगलवार, 19 मई 2015

एगो त्रिवेणी ईहवों बा



    मन में घुमे के उछाह, सुन्दरता के आकर्षण आ दू देशन के राजनैतिक सीमा के बतरस के त्रिवेणी में बहत हम त्रिवेणी जात रहनी. हमनी के छह संघतिया रहनी जा आ एगो जीप के ड्राईवर. हमरा के छोड़ के सभे एह प्रान्त से परिचित रहे. हमरा बेचैनी के एगो इहो कारन रहे की आजु ले हम त्रिवेणी नाम इलाहबाद के संगम खातिर सुनले रहनी. ई त्रिवेणी कवन ह? उत्तर-प्रदेश के कुशीनगर जिला मुख्यालय से लगभग नब्बे किलोमीटर उत्तर-पछिम के कोन में बा ई. पाहिले त गंडक नदी के भयावहता के पार कइल बड़ा कठिन रहल ह बाकि अब पनियाहवा के समानांतर रेल-सड़क पुल बड़ा आसान क देहले बा. पुल के सीना के रौंदत हमनी का पडोसी देश नेपाल के सीमा छुए चल देहनी जा. ई गंडक नदी ह, जवना में शालिग्राम पत्थर मिलेला. शालिग्राम पत्थर माने कि नारायण भगवान के प्रतिरूप. शायद एही से एह नदी के नारायणी कहलो जाला. – – – – पुले पर जीप रोक के हमनी का ऊपरे से गंडक के विराटता, सुन्दरता आ प्रवाह देखे लगनी जा. अब हमनी के गंडक के पार क गइनी जा. ओह गंडक के, जवन बरसात में अपना जवानी के उन्माद में सगरो बंधन तुरी देले. अपना ओह भयंकर रूप में पता ना केतना ऊसर खेत, लहलहात फसल, झुमत-गावत पेड़-खूँट आ असीमित सभ्यता-संसकारन के ढोवे वाला गाँवन के लील जाले. एकरा आक्रामक खोह में अनगिनत जीव-जंतु, लईका-बूढ आ जवान बिला गइल होइहें. ऊसर माटी बालू के ढेर में बदल गइल. तब्बो न जाने एकरा कछार से का लगाव, का मोह बा कि लोग मौतो से लड़ के जिनगी जीति लेला.
     नदियन के प्रति आस्था के कारन हमहूँ एगो सिक्का प्रवाहित क दिहनी. आस्था में आन्हर आदमी तर्क ना मानेला, नाहीं त एतना कुछ स्वाहा करे वाली गंडक के सिक्का से का होई? – – – अबहीं एक-डेढ़े किलोमीटर आगे बढ़ल होखब जा कि बिहार शुरू हो गइल. बिहार राज्य के पश्चिमी चंपारण जिला! चंपारण शब्दे से भारतीय इतिहास के एगो अध्याय, बापू के नाम आ तस्वीर के ईयाद क साथे एह पवन धरती के गौरव के सोझा माथ नवावे के मन करेला. अब सामने रहले बड़हन अरण्य-देवता! आपन दिल खोलले पलक के चादर बिछवले ई महानुभाव साईत हमनिए के बाट जोहत रहले. एहिजा कबो खाली चंपा के अरण्ये (वन) रहल होई, तब्बे त एह प्रान्त के नाम चंपारण परल होई. ई महोदय 840 वर्ग किलोमीटर में आपन पहचान बनवले बड़े. सखुआ आ सागवान के अधिकाई वाला ई वन-देव सीसो, सेमर, जामुन, खैरा, बेंत आदि के पेड़नो के खज़ाना हवन. एह कानन के साथ अबहीं एक्के किलोमीटर चलल जाला कि दिल्ली-रक्सौल रेल-मार्ग के किनरवे मदनपुर माई के स्थान बा. ई बड़ा पवित्र शक्तिपीठ ह. मदनपुर माई अपना सब भक्तन के मनोकामना पुरावेली. लागेला कि ओह वन-क्षेत्र क ओर से आवे वाला मेहमानन खातिर ई पहिला पुरस्कार ह. एहिजा आवे खातिर समनवे वाल्मीकि नगर रेलवे स्टेशन बा. हमनियो के माई के दर्शन कइनी जा. पूजा-पाठ क के चाय पिअनी जा आ वन-प्रान्त के भीतर चल पड़नी जा.
     छोट-छोट गाँव! – – – उबड़-खाबड़ रास्ता! अपना दिनचर्या में मगन लोग! जंगल में चारा चबावत गायन के झुण्ड! रम्हात बछड़ु! कंचा आ कबड्डी खेलत लइकन के जमात. मेमियात बकरी. बहारन आ कूड़ा के ढेर पर पहलवानी देखावत मुर्गा-मुर्गी. आइस-पाइस खेलत रसगर हवा. हम ओह लोगन के जीवन के दुरुहता से उदास रहनी आ ऊ लोग अपना जीवन-लीला में मगन रहल. हम ठावें-ठाव सावधानी आ जानकारी खातिर लागल बोर्ड देखनी- वाल्मीकि व्याघ्र योजना. हाय रे आदमी! आदमी के आदत अइसन बदलल कि एह वन्य-जीवन के रक्षा खातिर योजना चलावे के ज़रूरत पड़ गइल? – पता लागल कि ई 335.6 किलोमीटर में फइलल देश के 18वां आ बिहार के दुसरका परियोजना ह. एह परियोजना के शुरुआत 1990 में कइल गइल. ई उत्तर से रॉयल चितवन नेशनल पार्क (नेपाल) से आ पच्छिम में गंडक के जल-धार से घेराइल ह.
     
    इतिहासकार लोग पता ना का कहेला लोग, बाकिर एही वन में रामायण के रचयिता वाल्मीकि जी के पवित्र आश्रम बा. ईहाँ बाघ, चीता, तेंदुआ, सियार-लोमड़ी, नीलगाय, करीकी हरिन, बानर, वनमुर्गी, वनबिलार, अजगर, बिसतुईयन के साथे जूलॉजी-बोटनी आ चरक-शास्त्र खातिर ढ़ेर सामान बा. हमनी के आगे बढ़त जात रहनी जा. सड़क अपना रूप से कहीं-कहीं गुदगुदा के हँसावे ले त, कहीं-कहीं डेरवइबो करेले, रोअइबो करेले. ओकरा रूप में विविधता बा. चाल में ऊ सर्पीली बिआ. ऊँचास पर चढ़े-उतरे के बेरा ऊ कवनो मुँह फ़ुलवले नखरादार गोरी लागेले. आगे छोट-छोट पत्थरन से भरल ट्राली पलट गइल रहे. ईहवा पत्थरन के अवैध उत्खनन के काम बड़ पैमाना पर होला. हमनी के एक साथे अनेक रसन के अनुभव करत रहनी जा कि जंगल में से निकल के एकाएक कई लोग सड़क पर आ गइल. हमनी के डेरा गइनी जा कि कहीं डाकुअन के गिरोह त ना आ गइल? पता लागल कि नीचे एगो गड़ही बा, जवन के पानी सूखता. ई लोग ओही में मछरी पकड़त रहल ह लोग.
    ईहवा के मेहरारू कुल घर के काम के साथे-साथे सूखल लकडियो बीनेली कुल्हि. लईका कुल्हि पढ़ाई कम करेलें आ बकरी अधिका चरावेलें. एहिजा संयुक्त परिवार बहुते सफलता से चलत मिलेला. अक्षर से कोसन दूर रहल लोग अब बड़हन अन्तराल क बाद, बहुते बेचैनी से पढ़ाई करे के सोंचत बाड़े. कुछ दूर खाली जगह रहे, फेर मोड़ आ अब आ गइल वाल्मीकि नगर. सामने अदभुत नजारा बा. नीचे पूर्वी गंडक नहर के हरियर पानी, जवना के कुछे दूर आगे जाते 15 मेगावाट के विद्युत् परियोजना के जनम भइल बा. सामने बा जंगल के ऊहे गर्वीला स्वरूप, जे के हमनी के मदनपुरे से आत्मसात करत आवऽतानी जा. ऊपर बा नीला-धोवल आसमान. नहर के एक ओर सखुआ-सगवान आ दुसरका ओर खिलखिलात गोलमोहर के हरियरी. आगे एगो गोल-चौक बा, जहाँ अढाई मीटर ऊँच एगो स्तंभ बा. एह स्तम्भ के देख के ईहँवा से लगभग 60 किलोमीटर पुरुब लौरिया के अशोक स्तम्भ के ईयाद आवेला. ओके त प्रमाणिकता बा, बाकिर एकर नइखे. अब सैनिक लोग के छावानियन के पार क के हमनी के सदानीरा गंडक के किनारे रहनी जा. ना-ना, एकाध पल भ्रम में रहनी जा. आँख त देखत रहे बाकी मनवे ना मानत रहे. लागत रहे कि हमनी के कवनो दोसरा लोक में आ गइल बानी जा. पीछे एगो पुरान गेस्ट हाउस बा. उजाड़ जइसन. एह बेर बड़ा बारीकी से ओह्कर मरम्मत के काम होत रहे.
    अब हमनी के त गंडक के कछार पर खड़ा रहनी जा बाकिर ऊ हमनी से 7-8 मीटर नीचे बहत रहली. एहिजा के अवशेषन से बुझाता कि एह पिकनिक स्पॉट के कबो खुबे विकसित कइल गइल होई. केतना सुन्दरता बा एहिजा! मन करऽता कि सगरी बटोर ली. हमार आँख एह रूप के पिए खातिर छटपटाए लागल. पैर नाचे खातिर बावला बा. पीछे विराट कानन-प्रदेश, सामने हिमालय-श्रृंखला के सबसे नीचे वाला हरियर-हरियर पहाड़ी, नीचे कलकल करत गंडक आ ऊपर ललचत नीला आसमान. प्रसन्नता के एह लहरन के बीच में एगो टीस मन के सालेला कि प्रकृति के ई अनुपम सौन्दर्य आ सैलानी लोग के नाम पर हमनिए के सात आदमी! का कारण बा कि एह अभयारण्य में एगो अपरिचित भय से मन डेराइल रहेला? काहें कबो कवनो वादी त कबो कवनो सलाम जइसन शब्द डेरवावत रहेला?
    हमनी के बड़ी देर ले बइठ के प्रकृति के एह रूप से चार आँख करत रहनी जा. अब हमनी के जीप विदेशी कहाए खातिर बेचैन हो गइल. भैंसालोटन बैराज हमनी के कब नेपाल पहुँचा दिहलस, पते ना चलल. हमनी के इंडो-नेपाल सीमा पार क गइनी जा. 4 दिसम्बर 1959 के नेपाल के महारानी आ भारत सरकार द्वारा जल-वितरण खातिर भइल समझौता के फलस्वरूप एह भैंसालोटन बैराज के अस्तित्व सार्वजनिक यातायात के रूप में सामने आइल रहे. एहिजा से मुख्य गंडक नहर, पूर्वी गंडक नहर आ पश्चिमी नेपाल नहर निकलेले.
अब हमनी के त्रिवेणी में बानी जा. हिन्दू लोगन के धार्मिक स्थान! जवना के देखे खातिर हम बड़ा बेचैन रहनी. ई त्रिवेणी नेपाल के नवलपरासी जिला के एगो छोटहन बाज़ार ह. गंडक के किनारे चलत सड़क एकाध बेर नाचे से लागेले. गजब के दृश्य बा. दाहिने असीम जलराशि वाली गंडक के स्वरूप, बाएँ हेती-हेती झोपड़ीन में तारल मछरी आ बोतलबंद दारू के साथे भुँजा-चिउड़ा के दुकान. दुकान के सुन्दरता के नाम पर दुकानदार के रूप में नेपाली औरत, लड़की आ पीछे हरियरी से नहाइल पहाड़ी. ई ह त्रिवेणी! छोट बाज़ार. छोट-छोट मल्टी-परपज दुकान. एके गो दुकान में सबकुछ. चाये-पानी के दुकान में तारल मछरी आ बोतलबंद दारू के साथे भुँजा-चिउड़ा आ कोल्ड-ड्रींक. हमनी के सब संघतिया आपस में कवनो बांध ना बंधनी जा. सभे छक के आनंद उठावल. अब हमनी के ओहिजा गइनी जा, जहवाँ मेला लागेला. एहिजा नदी में उतरे खातिर सीढ़ी बनल बा. किनरवें छोट-बड़ कइगो मंदिर बनल बा आ ओहिजा घनहर छाया वाला एगो विशाल वट-वृक्षो बा. नदी में छोट-छोट नाव देखि के हमनी के दौड़ पड़नी जा. हमनी के नौका-विहार के खुब मज़ा लेहनी जा. ‘शैकत-शैय्या’ वाली ‘तनवंगी-गंगा’ में ना, कंठ ले भरल गंडक में.
    कुछ दूर आगे गइला पर गज-ग्राह के लड़ाई वाला ठाँव बा. श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार भगवान विष्णु के भक्त गज अऊर ग्राह में युद्ध एहिजे से शुरू भइल रहे. – – – केतना रमणीय बा ई सुन्दरता के प्रदेश! गंडक से तरी पावत एह क्षेत्र के असीम रूप-राशि से जहवाँ हम आनंदित होत रहनी, ओहिजा चुप होखे लगनी. जइसे हमार शब्द मर गइल आ आवाज़ के लकवा मार दिहलस. – – – बुझइबे ना करे कि आह्लाद में पीड़ा के कौन काम बा? – – – बाकी बावरा मन माने तब त! ऊ त भटके लागल. – – ई क्षेत्र खाली अपना रुपवे में आकर्षण ना राखेला. – – इहे प्रांतर रत्नाकर के वाल्मीकि बना दिहलस. सीता मईया अपना जीवन के मातृत्व-काल एहिजे बितवली. लव-कुश एही गंडक में नहइले होइहें. महाभारत के 20 वाँ अध्याय में भगवान श्री कृष्णो शायद एही गण्डकी-प्रदेश के वर्णन कइले बाड़े. सम्राट अशोको एह क्षेत्र के जानत रहलन. ‘नन्द-वंश’ के नंदनगढ़ एही तराई प्रदेश में बा. बापू अउर बा एह माटी क छू चुकल बा लोग. नेहरू जी के आँख एह सौन्दर्य के पी चुकल बिआ. एतना कुछ क बादो ई सुन्दरता ना जाने कवना अप्रत्यक्ष कारण से सैलानियन के आकर्षित ना करेले? सैलानी लोग के एह सुन्नर रूप से डर काहें लागेला? – – – ई सवाल हमरा मन के मथ देला.
   त्रिवेणी में तीन अलग-अलग नदी – गंडक, पंचनद आ सोहना के मिलन होला. एमे गंडक चाहे गण्डकी चाहे नारायणी मुख्य नदी ह. एतने ना, एहिजा तीन गो राजनैतिक सीमा रेखो मिलेले. – एक ओर से नेपाल, दोसरा ओर से पश्चिमी चंपारण (बिहार) आ पछिम के ओर से जा त उत्तर-प्रदेश के महाराजगंज जिला के सीमा तीनो गरबहियाँ करेला. जंगल, नदी आ पहाड़ जइसन तीन गो प्राकृतिक रचनो एहिजा लउके ला. एहिजा पुल, फूल आ कंद-मूल के आनंदो मिलेला. एहिजा मन, मस्तिष्क आ तन के आराम मिलेला. ईहवाँ भौतिक रूप से सामान्य जीवन, राजनैतिक शिथिलता आ सामाजिक चुप्पी बा. चर्चा से दूर रहिओ के नैसर्गिक सुख के ई उदहारण उपेक्षा से आहत नइखे. बिहार सरकार सड़कन के जीर्णोद्धार करा रहल बिआ. उत्तर-प्रदेशो ध्यान दिहल तेज़ क दिहले बा. गेस्ट-हाउस चमके लागल बा. सीमा सुरक्षा बल के मौजूदगी बढ़े लागल बा. लगऽता कि तीन सीमा रेखन के ई सौन्दर्य सबका दिल में उतरे खातिर बेचैन बा. भ्रमण के उत्कंठा जवन हमरा मन में रहत रहल ह, ईहवाँ आ के अउर बढ़ गइल. प्रकृति के चित्रकारी हमरा के अउर बुलाह्टा भेजे लागल. हम कतहूँ घूमे जानी, पहिलका नज़र में ओहिजा त्रिवेणीए जोहेनी. अब त हम बेर-बेर त्रिवेणी जाए लागल बानी. जबे मौका मिलेला, जा के छू लेनी. पूछेनी, – ‘त्रिवेणी, अब का हाल बा?’
जैसे ममता भरल हाथ हमरा माथा पर फेरत त्रिवेणी कहेली, -‘ ऐसहीं आवत रहऽ, त हमार हाल अच्छा त होइए जाई.’
    त्रिवेणी के सुन्दरता पर अब अक्सर सोचेनी कि जब प्रकृतिए में जिअत आदमी अपना रूप-प्रदर्शन खातिर इतना उत्कंठित रहेला, तब प्रकृति काहें ना रहे? – – – – नदी किनारे घूमत-घूमत हमनियों के पत्थरन के भीड़ में एकाध गो शालिग्राम पत्थर पाइए गइनी जा. हम त कुछ अउरियो सुन्नर आकृति वाला पत्थर अपना बेग में ध लिहनी. मन त सौन्दर्य से अघाइल आ परिस्थिति से व्यथित रहे. हमनी के जीतलो रहनी जा आ हारलो. भगवान भाष्कर के टहक कम होत-होत हमनी के जीप घर क ओर दौड़ परल.
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                                                                    - केशव मोहन पाण्डेय 

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