रविवार, 17 मई 2015

पर्यावरण-गीत


डढ़िया पर के चिरई कहे दुनू कर जोड़,
पेड़वा मत काट भइया घरवा हउवे मोर।।

पेड़वा जे कटब त मिली नाही खाना,
ऊसर हो जाई माटी, उगी नाही दाना,
ना एक्को बुनी बरसी, रोई बदरा पुका फोर।।

जीव-जन्तु मरे लगिहें, पुण्य नाहीं मिली,
बोल कवना बगिया में तब फूल खिली?
कहवाँ पर बजइहें बाँसुरिया चितचोर।।

कवल-करेजा तुहूँ मोर ल निकाली,
बाकिर ना काट ई धरती के हरियाली। 
पेड़वे से भरल बा जिनगिया में अँजोर।।

काटल ज़रूरी होखे त सुन मोर बानी,
नया पेड़ लगाव अउरी द ओके पानी। 
नाही त धरती उलटी, आफ़त आई बेजोड़।। 
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- केशव मोहन पाण्डेय

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