डढ़िया पर के चिरई कहे दुनू कर जोड़,
पेड़वा मत काट भइया घरवा हउवे मोर।।
पेड़वा जे कटब त मिली नाही खाना,
ऊसर हो जाई माटी, उगी नाही दाना,
ना एक्को बुनी बरसी, रोई बदरा पुका फोर।।
जीव-जन्तु मरे लगिहें, पुण्य नाहीं मिली,
बोल कवना बगिया में तब फूल खिली?
कहवाँ पर बजइहें बाँसुरिया चितचोर।।
कवल-करेजा तुहूँ मोर ल निकाली,
बाकिर ना काट ई धरती के हरियाली।
पेड़वे से भरल बा जिनगिया में अँजोर।।
काटल ज़रूरी होखे त सुन मोर बानी,
नया पेड़ लगाव अउरी द ओके पानी।
नाही त धरती उलटी, आफ़त आई बेजोड़।।
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- केशव मोहन पाण्डेय
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