बुधवार, 20 मई 2015

ई यमुना जी हई?

   हमके बिहाने-बिहाने आनंद विहार से ट्रेन पकड़े के रहल ह, से चारे बजे घर छोड़े के पड़ल ह। माफ़ करेब, घर ना, कमरा छोड़े के पड़ल ह। भोरहरिया के बात रहुए, से मेट्रो अबहीं चालू ना होले, एह से हम ऑटो क लिहुईं। आज इहो बुझा गउवे कि दिल्ली में ट्रैफिक के दंश ना रहे त घंटा के काम मिनिट में पक्का हो जाई। अगर पहिले ऑटो आ फेर मेट्रो लेतीं, तबो कम से कम डेढ़ घंटा के सफ़र बा बाकिर ऑटो वाला काका चालीसे मिनिट में जुमा देहुवें।
   असल में हम ईहाँ आपन यात्रा के किस्सा सुनावे खातिर नइखीं लिखत, बात त ई बा कि जब हमनी के आई टी ओ पार क के नदी के पुल पर पहुँचवीं जा कि हमार सह यात्री बनल हमार धरम पत्नी जी कहुवी,- ई यमुना जी हई?
   उनका यह पुछलका पर हमार मुड़ी हिल के स्वीकृति आ उत्तर दे देहुवे, बाकिर तब्बे मनवा में कुछ कुरमुरेरे लगुवे। एहू के कारन रहुवे कि दूनो ओर के बास से नकवा परपराए लगुवे। त अइसन नाला बनल पानी के स्रोत खातिरो भारतीय मन, विशेषकर भारतीय नारी के मन आजुवो नाको दबा के 'जी' से आदर दे के हाथ जोड़ ले ता। बात त ई कष्ट देला कि जब हमनी के गंगा-यमुना आदि जलस्रोत नदियन के 'जी' आ माई आदि से आदरणीय स्थान दे देहले बानी जा, तब ओही आदरणीय रूप के कुरूप काहें करत रहल बानी जा। अच्छा, जवन भइल तवन गइल, बाकिर अब्बो त चेतत नइखीं जा। भाई, पानी के स्रोतवे जब दूषित हो जाई त जिनगी कइसे साफ-सुथरा रही? त जे तरे जी कही के आदर दिहल जाता, ओही तरे आदरणीय मान के खाली दूरे से दसोनोह मत जोड़ीं, ओह आदरणीय के दुःख दूर करे के जतन करीं। रउरा जतन करीं, राउरो जतन होई।
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                           - केशव मोहन पाण्डेय


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