शुक्रवार, 19 जून 2015

साँच के आँच के ईs असर हो गइल

साँच के आँच के ईs असर हो गइल।
बात खुलते खुलत ज़हर हो गइल।।

इश्क इबादत हवे, सबसे सुनले रहीं,
हमहूँ कइनी तs एगो कहर हो गइल।।

रात बाटे अन्हरिया कहे लागल सभे 
देखते-देखते ई दुपहर हो गइल।।

सोचनी, बहियाँ में भर के जीएब जिनगी 
प्यार के हार फेर से मगर हो गइल।।

कबो एक पल रहें ना हमरा से अलग,
आज लउकें ना, कवन कसर हो गइल।।

तहके पुतली बना के पलक में रखेब,
एही सपना प केतना ग़दर हो गइल।।

द्रोपदी के सभे आपन रहलें मौन तब,
आज ऊहे कथा दर-ब-दर हो गइल।।
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            - केशव मोहन पाण्डेय 

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