बिहाने-बिहाने समाचार देखे बइठनी हँ तs आजु-काल्ह भारती जी, तोमर साहेब आदि लोग के चलती बा समाचार-चैनलन पर। बुझाता कि देश के सगरो बेमारी के जड़ दिल्लीए बा, आ एहिजा पँहुचे खातीर सभे जोड़-जुगाड़ में लागल बा। त, समाचारवा देखतहीं हम अपना लइकाईं में चलि गइनी हँ। ईयाद आवे लागल हs अपना बाबूजी आ माई से सुनल काथा। '- एगो रहे चिरई। ऊ दाना चुन-चुन के खात रहे। ऊ एगो चना पवलस। ---- '
सबसे ईयाद त ऊ आवे लागल ह कि बेचारी के चनवा खूँटा में गिर गइल। सबसे पहिले बढ़ई से गोहार लगवलस। ओह गोहर में चिरईया के पीड़ा रहे -
बढ़ई-बढ़ई तूँ खूँटा चीरs
खूँटवे में दाल बा
का खायीं, का पीं
का ले के परदेश जाईं??
बढ़ई ना सुनले। चिरईया पारा-पारी सगरो हजूर लोग से चिरउरी कइलस। सभे ताव देखावल। बाक़िर जब एगो हजूरी के पैमाना पर कमजोर से भाव मिलल त सगरो व्यवस्थे अपना औकात में आ गइल।
दिल्ली त देश के राजधानिए ना, शान ह। हर भारतीयन के पहिचान ह। ई दिल्ली अपना जनम से ले के आज ले, हर छन, हर दशा में, हर बात में चर्चित रहल बा। ई दिल्ली मुग़लन से ले के अंग्रेज़न ले, हजूरन से ले के मजूरन ले के बात बतावे ले। ई दिल्ली खुशवंत सिंह वाली 'आवs जाs, घर तहरे हs' त बुझइबे करेले, ई दिल्ली अजमेरी, कश्मीरी आ इंडिया गेट वाली दसो दिशा में दुआरी रखे वाली ह। हँs त बात हम दिल्ली के चर्चा के करत रहनी हँ। आजुओ-काल्ह खूब चर्चा हो ता। दिल्ली के सफाई के। दिल्ली के बेमारी के। दिल्ली के राजनीति के। दिल्ली के नसल के। दिल्ली के नेता के।
खैर, आजु काल्ह समर्थन से ले के विरोध ले सगरो व्यवस्था अपना औकात में आ गइल बा। ऊ चिरइया त आपन दम देखा के सबके झँकझोर देहलस। आजु-काल्ह त भले केतनो पाँख फडफ़ड़ावे लोग, हलाल होइए जा ता लोग। जब अपना घरवे में हलाली हो ता, त परदेश गइला के का गरज बा जी? चिरई केतनो उड़े लोग, जा के आसमान चुप ले लोग, समुन्दर लाँघ ले लोग, गिरी-गह्वर, पुरुब-पच्छिम, कही कूद आवे लोग बाकिर एक दिन गोड़े के नीचे दबावे के प्रथा के कारणे मुँह ;सीये ले ता लोग।
चिरई! तहरा त अकेलहीं उड़े खातीर तइयार होखे के पड़ी। पाँख में भाला बान्ह चाहे बरछी, सूर से राग अलाप चाहे विप्लव के गीत, जागे के त तहरे के पड़ी। सुतल रहबू त खाली सपना देखबू, लोग नोच खाई, जाग जइबू त सभे आँख खोली। तूँ जगबू त लोग नव-निहोरा करे पर मज़बूर हो जाई आ दूर ले दौड़े खातीर मज़बूर ना होखे के पड़ी। पहिलके जगह पर लोग बतिया सुन ली आ दसो नोह जोड़े लागी -
हमके डाँटs ओटs मति कोई
हम खूँटा चिरब लोई।
अब त तहरा सोचें बा कि जगबू कि खाली सबूज-सपनवे में भुलाइल रहबू। गुरुवर आर. डी. एन. श्रीवास्तव जी के एगो हिंदी क्षणिका ईयाद आ गइल जवना के भोजपुरी में अनुवादित कर तानी -
औरत आगि के लपट हई
कुछ देवी ई धरम खूबे निबाहेली
लइकाईं में रोटी जरवली
उमीर के उठान पर दिल
आ बूढ़उती में
पतोहीए जरावेली।
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- केशव मोहन पाण्डेय
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