मंगलवार, 9 जून 2015

सोसल साइट्स के समूह आ ओकर शक्ति

                                                 
                                                  चित्र : www.dugout.softballexcellence.com

   हमेशा गतिशील रहले के नाम जिनगी कहल जाला। मनीषी आ विद्वान लोग पता ना कवना-कवना रूप-रंग आ ढंग से जिनगी के देखले-समझले आ समझवले बा लोग, बाकीर हमरा त इहे लागेला कि सहजता से जीए के नाम जिनगी ह। जहँवा ना कवनो अभिमान होखे ना केहू से अमरख, ना कवनो बात के दंभ होखे, ना केहू से बैर। जिनगी खाली अपने खातीर जीअला के नाम ना हो सकेले। ऊ त बिरानो के आपन बनवला के शैली ह।
    आजु-काल्ह के जीवन तकनीक पर आधारित जीवन भले ना होखे, तकनीक के साथे जीअत त होइए गइल बा। आज लोग अपना मिट्टी, माई आ माई के भाषा पर बड़ा जोश से आपन विचार बता रहल बा। चरचा में सम्मिलित हो रहल बा। चरचा कर रहल बा। आजु-काल्ह फेसबुक आ ट्वीटर खाली टाइम पास के माध्यम नइखे रहि गइल, ई सब एगो सुखद आ सकारात्मक बहस के साथे आपन आ बिराना के विषय में चिंता करे के माध्यम बन गइल बा। लोग एकजुट होके समूह में काम कर रहल बा। 
    अब हम अपना बात के पहिले समूह पर तनी चरचा करे के चाहेब। कई विद्वान लोग समूह के परिभाषित कइले बा। सब ले दे के इहे बुझाला कि समूह में हमेशा एक से अधिका लोग के सक्रियता रहेला। कम-से-कम दू आदमी त रहबे करेला। ऊ मरद-मेहरारू होखे, चाहें सोसल साइट्स के अजनबी मित्र। समूह के विषय में इहो कहल जाला कि ओह सदस्यन के एगो निर्धारित लक्ष्य होला। लक्ष्य के सुभाव अलग-अलग हो सकेला बाकीर बिना स्टेशन के गाड़ी कहाँ रूकी? हर एक समूहन के कुछ आपन मर्यादा आ नियम होला। कवनो जरूरी नइखे कि ई सब लिखले होखे। भावात्मक नियम भी बहुत होला। जइसे अपना बाप-माई के सामने के तरे व्यवहार करे के चाहीं, अपना जमला के सामने के तरे आ अपना गोतिया-दमाद के सामने के तरे। एकरा साथही समूह अलग-अलग सुभाव के आदमी के संकलन से बनल एगो सामाजिक इकाई बन जाला। अपरिचित आदमी भी समूह में रहि के एक दूसरा से जुड़ जाला। एक-दूसरा के समुझे-बुझे लागेला।
    सामाजिक समूहन खातीर कहल जाला कि एहमे तनीका ढेर स्थिरता रहेला काहें कि सामाजिक चिंतन आ सोच पर बनल रहेला। वइसे त एकर सदस्यता अपना इच्छा पर रहेला बाकीर सामाजिकता में कई बेर दोसरा के इच्छा के भी अपनावे के पड़ेला। इहो देखल जाला कि जब दोसरो के इच्छा स्वीकारे के गुन आ जाला तबे सामाजिक सरोकार में बढ़ोत्तर होला। हमरा नजर में एक आदमी के तुलना में समूह के शक्ति ढेर होले। कई बेर देखल जाला कि जवना काम के अकेले हम नइखीं कऽ सकत, समूह के शक्ति से ऊ चट् लिट्टी पट भंटा हो जाला। कहल जाला कि हम अगर कवनो समूह से जुड़ल बानी तऽ ओकरा के दुरूस्त राखे के हमार नैतिक आ भावात्मक दायित्व बा।
    हम ऐतना बकवास खाली ई बतावे खातीर करऽ तानी कि आजु-काल्ह सोसल साइट्स पर समूहन के भरमार बा। हम बहुतेरे लोग के अपना मित्र सूची में रखले बानी आ लोगो हमरा के रखले बा जेकरा बारे में ना हम ढेर जानऽ तानी, ना ऊ हमरा बारे में जानऽ ता बाकीर बहस में हम सभे सरीक बानी जा। ओह बहस से बड़ा आनन्द आवेला। समूह में जब एकता के शक्ति के साथे बिना अमरख, बिना ईष्या आ बिना कवनो मलाल रखले उन्मुक्त बहस होई तब केहू के ना केहू के कल्याण होखबे करी। 
   ह्वाट्स एप्प आदि पर हम कइगो ग्रुप माने समूह से जुड़ल बानी। हमहूँ एगो ग्रुप बनवले बानी। कइगो तऽ हमरा प्रोफेशन से जुड़ल हमरा कार्य-स्थल के ग्रुप बा, तऽ कइगो पारिवारिक आ कइगो मैत्रिक। देश-परदेश में रहे वाला भाई लोग कइगो ग्रुपन से जुड़ के अपना-अपना गतिविधि से एक-दोसरा के अवगत करावत रहेला लोग। ओहि में हमार एगो सँघतिया बाड़े - भाई अशोक मिश्रा जी। बड़ा ही मेहनती आ बड़ा ही लायक मनई हवें। चेहरा पर हमेशा चवन्निया मुस्की रहेला आ जहाँ ले हम अनुभव कइले बानी, करेजा में समुन्दरो से गहिरा प्रीति। तऽ हमार अशोक भाई एगो ग्रुप बनवले बाड़े ‘भोजपुरी बोली’। बड़ा निमन-निमन पोस्ट शेयर होत रहेला। कल्हिया ओहिपर एगो मेम्बर बाड़े - नील कमल सिंह। रउरा उनकरा के समुझ सकेनी कि ऊ अपना नामवा में ‘नील’ के बदले ‘निल’ लिखेले। खैर, तऽ तनी उनकर पोस्ट देखीं। उनकर पोस्ट एगो लिंग के साथे रहुवे। हम काॅपी करे के प्रयास करऽ तानी - ‘भइया हम निल कमल सिंह, ‘पिय ऐ बलमुआ ढोड़ी में बियर डाल के’ अपार सफलता के बाद हमार नया एल्बम बेव म्यूजिक से आ गईल बा। हमार एल्बम के नाम बा रंगबाज भेजपुरिया। आप लोग से अनुरोध बा कि आप लोग हमार गाना डाउनलोड कर के जरूर सुनी। हमार आशा ना विशवास की आप लोग के जरूर पसंद आई।’ ई उनकरे शब्द ह, खाली तनी मात्रा हम ठीक कइले बानी।
   भाई उनका पहिला अलबम के नाम पढ़ के हम पूछूईं कि ‘भोजपुरी काहें फूहड़ कहा तिया?’ त कवनो उत्तर ना देहूँवे। ग्रुप से अलगे, अकेले में हमरा के हाय! कह के चैटिंग करे के चहूँवे। हम बहस ग्रप में करे के चाहत रहुँई। हमरा लागता कि भोजपुरी के पहिचान से फूहड़ता के मइल हटा के ओकरा असली गंध से परिचय करावला में ही भलाई बा। पता ना अइसन गाना लिखे वाला अपना ज्ञान के प्रमाण काहें दे ता लो। 
    हम तऽ अपना लेख के माध्यम से अइसन अश्लील गाना लिखे वाला, गावे वाला आ गवावे वाला के धिक्कार दे तानी कि ई व्यवसाय कइला से अच्छा बा सुई-बटन लगावल जाय। जूता सिअल जाव। मैला उठाल लाय। ना त अगर ढेर भँड़ुआ बने के लालसा बा त भाई एक बेर अपना घरवो मे अपना माई-बहिन-बेटी के आपन गीतिया सुना ल लोगीन।
    तनी विचार तऽ करीं आ बताईं कि का भोजपुरी में सुन्नर गीतन के कमी बा? बाकीर अश्लील गीतन के कारण सुन्नरता पर अपमान के चादर चढ़ गइल बा। अपना भोजपुरी के आदर के उच्चासन पर फेर से विरामान करे के खातीर हर हाल में, हर कीमत पर, हर ठाँव में, हर ताकत से विरोध होखे के चाहीं। अगर विरोध नइखे होत तऽ अपने गोड़ पर अपने टाँगीं मारला के बात बा।
    हमार एगो भाई सौरभ श्रीकांत जी भी एगो ग्रुप बनवले रहलें। हमरो के जोड़ले रहले। हम देखनी कि बेचारू पहिले त सबसे राय ले के जोड़ले बाकीर बाद में लोग एक-दोसरा के अनाप-सनाप मैसेज भेजे लागल लोग। एक जने तऽ फूहड़ता के हद कऽ देहले आ चर्चा कइला पर बेशर्मी के हद। हमके हिरदय से मलाल बा कि हम ओह ग्रुप से निकल गइनी। 
    तऽ सबसे दसो नोह जोड़ के विनती बा कि कवनो हाल में अश्लील गीतन के मत स्वीकारीं। विरोध के आवाज तऽ उठाईं। जरूर रउरे जइसन दू-चार बहादुर योद्धा मिलिए जइहें। हर ग्रुप (समूह) के एगो शक्ति होला। समूह बने त ओह शक्ति के भी परिचय मिले के चाहीं। समूह में एकजुटता रहे के चाहीं। चाहें केहू होखें, अश्लीलता के विरोध होखे के चाहीं।
    सोसल साइट्स के समूहन में बाकी सब कुछ देखे के मिलेला बाकीर एकता के कमी मिलेला। जब समूह में एकते ना रही त शक्ति कहाँ से आयी। त, सभे जवना भी समूह से जुड़ल बा, ओह समूह के शक्ति बने। शक्ति सकारात्मक आ सृजनात्मक पक्ष खातीर। शक्ति पक्षपात पूर्ण बहस खातीर। शक्ति अपना भाषा के विकास खातीर। हमरा विचार से त जवना समूह में एकता के, अपनत्व के आ साँच के शक्ति नइखे, ओह समूह में अपनहीं ना रहे के चाहीं। समूह के विस्तार त सोसल साइट्स के दू-तीन जने से ले के लाखन लोग के हो सकेला। समूह खाली इकट्ठा करे के नाम ना ह, ई गतिशील आ सक्रिय कार्यकलाप के चिन्हा ह। एक समूह के आधार भौतिक निकटता ना, ई त सामूहिक अंतःक्रिया के आत्मा के आधार पर होखे के चाहीं। इहो साँच ह कि समूह के गतिशीलता अपना-अपना रूचि पर होला। भाई जब रउरा भोजपुरी के नाम पर, भोजपुरी के गौरव दिलावे खातीर समूह बनावत बानी त ओहपर अमल करीं। ना त भोजपुरी भाषा त ‘भाषा’ आ ‘बोली’ के बीचे में कई बेर ‘अन्हरा-थोपी’ खेलत आजुओ अपना सम्मान खातीर तरसत बिआ। लोग समूह के नाम पर गुट के ईनार में घेराइल बा आ आपन-उनकर कहि के गाड़ी सरकावता बाकीर भोजपुरी खातीर सचहूँ कुछ हो ता का?

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                                                                        - केशव मोहन पाण्डेय 
  

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