गुरुवार, 25 जून 2015

कब आई डोलिया कँहार

     सन 2007 में हम एगो भोजपुरी फिलिम 'कब आई डोलिया कहार' के लिखले आ निर्देशित कइले रहनी। दुर्भाग्य रहे कि आर्थिक तंगी के कारन ऊ जतरा ढ़ेर आगे ले ना बढ़ल बकीर ओहमे अभिनय करे वाला सखा लोग के सफ़र आजुओ अनवरत चलs ता। ओही फिलिम के एगो आकर्षक पोस्टर -

शुक्रवार, 19 जून 2015

दिल के दुआ जब बेअसर हो जाला

खुशहालो जिनगी जहर हो जाला।
दिल के दुआ जब बेअसर हो जाला।।

लाख जतन कइला पर भी मिले ना मंजिल,
डगमगात कदम जब कुडगर हो जाला।।

सुन्न अंखियन से छलक जाला समुन्दर,
हिया में याद के जब कहर हो जाला।।

झोहे केतनो अन्हरिया साँझ के बेरा त का,
उजास होइए जाला जब सहर हो जाला।।

गरूर केतनो करे केहू मातल जवानी पर,
एक दिन उमीरिया के असर हो जाला।।

जिनगी में आवेला अइसन ठाँव कई,
सगरो जिनगिया ओही के नज़र हो जाला।।
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            - केशव मोहन पाण्डेय 

दहशत के किस्सा

दहशत के किस्सा त दर्दनाक होइबे करी।
गम के दौर में ख़ुशी इत्तेफाक होइबे करी।।

माचिस के तिल्ली कबले खैर मनाई आपन,
जरावल काम बा त खुद खाक होइबे करी।।

जेकर काम होखे भरम उतारल चौराहा पर, 
ओकरो बदन पर कौनो पोशाक होइबे करी।।

सरेह सजल होई सिंगार के पिटारी से आज,
शहरी भइल मन में कुछ बात होइबे करी।।

जवान बिटिया बिआ गरीब घर-तिजोरी में,
 दुआरी-दुआरी ऊ रगड़त नाक होइबे करी।।

उनका पाछे-पाछे जे कबो घूमल होइब बाबू,
जवार में आज तहरो धाक होइबे करी।।

मुहब्बत साँच बा त ई यकीन क ल तूँ,
देर-सबेर एगो तहरो डाक होइबे करी।।
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- केशव मोहन पाण्डेय 

लइकन के लोरी

कतहूँ लइकन के लोरी सुनावे केहू।
याद बन अचके अंखियन में आवे केहू।।

नेह अइसन कहाँ जग में दोसर मिली,
ठंडा माड़-भात फूँक के खिआवे केहू।

कसूर कवनो होखे, ढाँप लेस अँचरा तरे,
माई से आ के जब ओरहन सुनावे केहू।

गुजार देहनी जिनगी के उमीर एतना,
अपना सामने तबो लइके बतावे केहू।

लपट फइलल बा सगरो जहां में अगर,
एकाध बूंद से केतना बुतावे केहू।

चेहरे के किताब पढ़ समझ जाए जे,
ओसे कइसे दोसर बहाना बनावे केहू।।
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                       - केशव मोहन पाण्डेय 

नेहिया के बान


हरदम नेहिया के बान फेंकल क रs।
चाहें कवनो नज़रिया से देखल क रs।।
           साँस तड़पे लागल 
           आस जागे लागल 
           प्रीत में गोली से 
           लोग दागे लागल,
आस दिल के पुराव, करीब आ के तू,
हमके रोकल क र, राह छेंकल क रs।। 
           रात होखे त का 
           केहू टोके त का 
           तहके चाहत रहेब 
           देबू धोखे त का,
सगरो चिंता मरे, फिकिर सब छूटे,
खाली तहके सोचीं, अइसे बेकल क रs।।
          बैर भूले सभे 
         मन-झूले सभे 
         प्यार ई देख के 
         फले-फूले सभे 
आदर सब में रहे, केहू कुछ न कहे,
काम अइसन क र, भले एकल क रs।।
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- केशव मोहन पाण्डेय 

साँच के आँच के ईs असर हो गइल

साँच के आँच के ईs असर हो गइल।
बात खुलते खुलत ज़हर हो गइल।।

इश्क इबादत हवे, सबसे सुनले रहीं,
हमहूँ कइनी तs एगो कहर हो गइल।।

रात बाटे अन्हरिया कहे लागल सभे 
देखते-देखते ई दुपहर हो गइल।।

सोचनी, बहियाँ में भर के जीएब जिनगी 
प्यार के हार फेर से मगर हो गइल।।

कबो एक पल रहें ना हमरा से अलग,
आज लउकें ना, कवन कसर हो गइल।।

तहके पुतली बना के पलक में रखेब,
एही सपना प केतना ग़दर हो गइल।।

द्रोपदी के सभे आपन रहलें मौन तब,
आज ऊहे कथा दर-ब-दर हो गइल।।
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            - केशव मोहन पाण्डेय 

इतना नीचे ना गिरS

इतना नीचे ना गिरS कि शरम छोड़ द।
हार आ जीत के कुछ भरम छोड़ द।।

पीपरा कुइयाँ के पनिया मीठ लागे,
कइसे कहब ऊ बाबा बरम छोड़ द।।

ढंग जिनगी के सबके अलग होखेला, 
ऊ मुहब्बत छोड़ें, तू हरम छोड़ द।।

दरिया काग़ज़ के कश्ती से डरबे करी,
शर्त अइसन कुछ आपन करम छोड़ द।।

उनका अँखिया में बाटे नशा प्यार के,
चाल देखे के बिस्तर नरम छोड़ द।।

खाली उघटा-पुरान से बात ना बनी,
बात सुलझे बदे कुछ गरम छोड़ द।।

कइले 'केशव' के बेकल बहुत बाटे जे, 
उनका बतिया के सगरो मरम छोड़ द।।
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            - केशव मोहन पाण्डेय 

महुआ मन महँकावे


                                                                चित्र : www.pinterest.com
महुआ मन महँकावे,
पपीहा गीत सुनावे,
भौंरा रोजो आवे लागल अंगनवा में।
कवन टोना कइलू अपना नयनवा से।।

पुरुवा गाsवे लाचारी,
चिहुके अमवा के बारी,
बेरा बढ़-बढ़ के बोले,
मन एने-ओने डोले,
सिमटे लागल सिवनवा शरमावा से।।

अचके बढ़ जाला चाल,
सपना सजेला बेहाल,
सभे करे अब ठिठोली,
कोइलर बोले ले कुबोली,
हियरा हरषे ला जइसे फगुनवा में।।    

खाली चाहीं ना सिंगार,
साथे चाहीं संस्कार,
प्रेम पूजा के थाल,
बाकी सब माया-जाल,
लोग कहे चाहें कुछू जहानवा में।।
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                 - केशव मोहन पाण्डेय 

ख़ास बतिया कहेके बहाना चाहीं

साथ आपन होखे या बेगाना चाहीं।
ख़ास बतिया कहेके बहाना चाहीं।।

मेहनत हs इबादत त घबड़ाए के का,
ज़िन्दगी में रुत हरदम सुहाना चाहीं।।

शौक पूरा करे में पसंद देखल जाला,
भूख लगला पर बसियो खाना चाहीं।।

सभे कहेला इहे - प्यार पूजा हवे,
सच समझे ला दोसर जमाना चाहीं।।

ना रहलो पर जेके एहसास करे सब,
खुद्दारी भरल अइसन दीवाना चाहीं।।

परई सबकर चढ़े हँड़िया पर रोजो, 
इहे पाक दिल वाला सयाना चाहीं।।
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                  - केशव मोहन पाण्डेय 

कब आई डोलिया कँहार

सन 2007 में भोजपुरी फिल्म "कब आई डोलिया कँहार" का लेखन और निर्देशन 

जुझारू जवान कबो मरेला नाहीं

सच के साथे जे रहे, कबो डरेला नाहीं।
जुझारू जवान कबो मरेला नाहीं।।

आन-बान शान रही, जाई चाहें प्राण हो,
गला कट जाये तबो कटी ना जुबान हो,
              इहे हवे पहचान,
            वीर भारती जवान,
हई करेब, ना करेब, कबो कहेला नाहीं।
जुझारू जवान कबो मरेला नाहीं।।

जीत मिले चाहें कबो मिल जाए हार त,
जिनगी में चाहीं सबके मीठ बोली,प्यार त,
             सहज व्यवहार 
           नाही रही तकरार
खाली मट्ठा बदे लोग दही महेला नाहीं।
जुझारू जवान कबो मरेला नाहीं।।

बतिए मेटाs देला मतभेदवन के पाट के,
बतिए के कारन केहू रहेना कवनो घाट के,
             मत बोले बेफाँट,
             बोले बात छाँट- छाँट,
बतिए से मिलल घाव कबो भरेला नाहीं।
जुझारू जवान कबो मरेला नाहीं।।
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- केशव मोहन पाण्डेय 

गुरुवार, 11 जून 2015

हमके डाँटs ओटs मति कोई

    बिहाने-बिहाने समाचार देखे बइठनी हँ तs आजु-काल्ह भारती जी, तोमर साहेब आदि लोग के चलती बा समाचार-चैनलन पर। बुझाता कि देश के सगरो बेमारी के जड़ दिल्लीए बा, आ एहिजा पँहुचे खातीर सभे जोड़-जुगाड़ में लागल बा। त, समाचारवा देखतहीं हम अपना लइकाईं में चलि गइनी हँ। ईयाद आवे लागल हs  अपना बाबूजी आ माई से सुनल काथा। '- एगो रहे चिरई। ऊ दाना चुन-चुन के खात रहे। ऊ एगो चना पवलस। ---- '
    सबसे ईयाद त ऊ आवे लागल ह कि बेचारी के चनवा खूँटा में गिर गइल। सबसे पहिले बढ़ई से गोहार लगवलस। ओह गोहर में चिरईया के पीड़ा रहे -
                                                         बढ़ई-बढ़ई तूँ खूँटा चीरs 
                                                         खूँटवे में दाल बा
                                                         का खायीं, का पीं
                                                         का ले के परदेश जाईं??
     बढ़ई ना सुनले। चिरईया पारा-पारी सगरो हजूर लोग से चिरउरी कइलस। सभे ताव देखावल। बाक़िर जब एगो हजूरी के पैमाना पर कमजोर से भाव मिलल त सगरो व्यवस्थे अपना औकात में आ गइल। 
      दिल्ली त देश के राजधानिए ना, शान ह। हर भारतीयन के पहिचान ह। ई दिल्ली अपना जनम से ले के आज ले, हर छन, हर दशा में, हर बात में चर्चित रहल बा। ई दिल्ली मुग़लन से ले के अंग्रेज़न ले, हजूरन से ले के मजूरन ले के बात बतावे ले। ई दिल्ली खुशवंत सिंह वाली 'आवs जाs, घर तहरे हs' त बुझइबे करेले, ई दिल्ली अजमेरी, कश्मीरी आ इंडिया गेट वाली दसो दिशा में दुआरी रखे वाली ह। हँs त बात हम दिल्ली के चर्चा के करत रहनी हँ। आजुओ-काल्ह खूब चर्चा हो ता। दिल्ली के सफाई के। दिल्ली के बेमारी के। दिल्ली के राजनीति के। दिल्ली के नसल के। दिल्ली के नेता के। 
     खैर, आजु काल्ह समर्थन से ले के विरोध ले सगरो व्यवस्था अपना औकात में आ गइल बा। ऊ चिरइया त आपन दम देखा के सबके झँकझोर देहलस। आजु-काल्ह त भले केतनो पाँख फडफ़ड़ावे लोग, हलाल होइए जा ता लोग। जब अपना घरवे में हलाली हो ता, त परदेश गइला के का गरज बा जी? चिरई केतनो उड़े लोग, जा के आसमान चुप ले लोग, समुन्दर लाँघ ले लोग, गिरी-गह्वर, पुरुब-पच्छिम, कही कूद आवे लोग बाकिर एक दिन गोड़े के नीचे दबावे के प्रथा के कारणे मुँह ;सीये ले ता लोग। 
     चिरई! तहरा त अकेलहीं उड़े खातीर तइयार होखे के पड़ी। पाँख में भाला बान्ह चाहे बरछी, सूर से राग अलाप चाहे विप्लव के गीत, जागे के त तहरे के पड़ी। सुतल रहबू त खाली सपना देखबू, लोग नोच खाई, जाग जइबू त सभे आँख खोली। तूँ जगबू त लोग नव-निहोरा करे पर मज़बूर हो जाई आ दूर ले दौड़े खातीर मज़बूर ना होखे के पड़ी। पहिलके जगह पर लोग बतिया सुन ली आ दसो नोह जोड़े लागी -
                                                       हमके डाँटs ओटs मति कोई 
                                                       हम खूँटा चिरब लोई। 
     अब त तहरा सोचें बा कि जगबू कि खाली सबूज-सपनवे में भुलाइल रहबू। गुरुवर आर. डी. एन. श्रीवास्तव जी के एगो हिंदी क्षणिका ईयाद आ गइल जवना के भोजपुरी में अनुवादित कर तानी -
                                                       औरत आगि के लपट हई
                                                        कुछ देवी ई धरम खूबे निबाहेली
                                                        लइकाईं में रोटी जरवली
                                                        उमीर के उठान पर दिल
                                                        आ बूढ़उती में
                                                        पतोहीए जरावेली।
                                                 ...........................
                                                                 - केशव मोहन पाण्डेय

मुक्तक

 दुःख बढ़ के जब ताड़ हो जाला।
 डूबते के सहारा जुगाड़ हो जाला।
कोशिश कर त जीत होइबे करी,
नाहीं त जिनगी पहाड़ हो जाला।।
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           - केशव मोहन पाण्डेय 

ललकार

                       मीठ भाषा भोजपुरी,
                       तबो राखें लोग दूरी,
             खोल अखियाँ बाबू एकबार देख लS।
          सात समुन्दर पार ले विस्तार देख लS।
            नाहीं मनब त, अबकी हुंकार देख लS!!  

            संत कबीर, गुरु गोरख बाबा भोजपुरी में लिखत रहले।
            ग्रियर्सन जी बहिरंग भाषा में एही के त गिनत रहले।
                        मारीशस फिजी सूरीनाम 
                        होखे भोजपुरी के काम 
                        आरा भोजपुर के बानी 
                         बोले करोड़ों हिंदुस्तानी।
             देखल चाह त काम के आधार देख लS।
            नाहीं मनब त, अबकी हुंकार देख लS!!

            व्याकरण पर कतहूँ कसि ल, भाषा के ना झूठलइब तू।
            संविधान में शामिल क ल, ना तs बड़ा पछतइब तू।
                           तनी बोल आपन इच्छा 
                          चाहें कहीं लs परीक्षा 
                          भाषा भाव में विभोर 
                           हमके देख चारू ओर 
             नाहीं सुनब त अबकी आर-पार देख लS।
             नाहीं मनब त, अबकी हुंकार देख लS!!

             बटोहिया के वियोग में इहवा, मन छछनत देखल जाला।
             संस्कार में हर उत्सव के, सबकुछ अर्पण सीखल जाला।
                            नाही बोलबs जाके संसद 
                            त जमइहें पाँव अंगद। 
                            मत बुझs हो बेकार।
                            भाषा नीक बा हमार।
             खाली धमकी ना हs ई ललकार देख लS।
              नाहीं मनब त, अबकी हुंकार देख लS!!
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                                  - केशव मोहन पाण्डेय

'ई बिस्मिल के हs'


   11 जून के रामप्रसाद बिस्मिल जी के जन्मदिन मनावल जाला। वइसे त भारत में महापुरुषन के ना कबो कमी रहल बा, ना रही, बाकिर राजनैतिक लिप्सा आ महत्वाकांक्षा के कारने रोजो जन्मदिन मनावल जाला। बेचारु बिस्मिल के जन्मदिन कमे लोग मनवता। सुने में आवेला कि ऊ भाजपाई लोग के सेनानी रहले। खैर, अगर आजु देश बचल बा आ हमनी के स्वतंत्रता दिवस मनावल जाता त ओहमे उनकर केहु से उनइस योगदान ना रहे। ऊ लोग त माई के अइसन सपूत रहे लोग कि भारत के बँटवारा खातीर कबो सोचलहू ना रहे लोग। 
बिस्मिल जइसन सपूतन के त भारत-त-भारत ह, पाकिस्तानो में जन्मदिन मनावे के चाहीं। ओ लोग खातीर कवनो जाति, धरम आ विचारधारा के बान्हा ना रहे। बस ओह सरफरोसियन के तमन्ना के त क़ातिल बाजुओ जानत रहे। 
    आज हमार एगो पोस्ट देख के हमार सात बरीस के एगो भतीजा पूछलसिहs कि चाचा ई बिस्मिल के हs।  तब हम कुछु लिखे के बेचैन हो गइनी हँ। आईं रामप्रसाद बिस्मिल के बारे में अपना भतीजवा के बहाने तनी-मनी बतावे के प्रयास कर तानी। ऊ देश के आज़ादी के सपना देखे वाला भारत माता के एगो सपूत रहले। उनकर जनम 11 जून 1817 के उत्तर प्रदेश के शाहजहाँपुर में भइल रहे। अंग्रेजी सरकार के नाच नचावे में माहिर सेनानियन में बिस्मिलो एक डेग आगहीं रहले। अंग्रेजी सरकार ओह क्रान्तिकारी, स्वतन्त्रता सेनानी, कवि, शायर, अनुवादक, बहुभाषाभाषी, इतिहासकार आ साहित्यकार के भगत सिंह, चन्द्रशेखर आज़ाद आदि जइसन आपन दुशमन माने। ऊ कुकर्मी अंग्रेज 30 बरीस के बिस्मिल के 19 दिसंबर 1927 के गोरखपुर के जेल में फाँसी दे देहले सों। 
    रामप्रसाद जी के 'बिस्मिल',' राम', 'अज्ञात' आ 'पण्डित जी' आदि उपनाम रहे। ऊ भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के आंदोलनकारी रहले। ऊ प्रमुख संगठन हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन में सक्रीय रहले। उनकर सबसे मशहूर उपनाम बिस्मिल रहे जवना के हिन्दी में माने होला - आत्मिक रूप से आहत। बिस्मिल के अलावा ऊ राम आ अज्ञातो के नाम से लेख आ कविता लिखस। आज माई के सपूत के सलामी में एगो दोहा बन गइल ह -
बिस्मिल के जिनगी मिलल, भले थोर या ढेर। 
पर ना कवनो हाल में, माटी मिलल अनेर।। 
                                                      ---------------------
                                                                    - केशव मोहन पाण्डेय 

मंगलवार, 9 जून 2015

सोसल साइट्स के समूह आ ओकर शक्ति

                                                 
                                                  चित्र : www.dugout.softballexcellence.com

   हमेशा गतिशील रहले के नाम जिनगी कहल जाला। मनीषी आ विद्वान लोग पता ना कवना-कवना रूप-रंग आ ढंग से जिनगी के देखले-समझले आ समझवले बा लोग, बाकीर हमरा त इहे लागेला कि सहजता से जीए के नाम जिनगी ह। जहँवा ना कवनो अभिमान होखे ना केहू से अमरख, ना कवनो बात के दंभ होखे, ना केहू से बैर। जिनगी खाली अपने खातीर जीअला के नाम ना हो सकेले। ऊ त बिरानो के आपन बनवला के शैली ह।
    आजु-काल्ह के जीवन तकनीक पर आधारित जीवन भले ना होखे, तकनीक के साथे जीअत त होइए गइल बा। आज लोग अपना मिट्टी, माई आ माई के भाषा पर बड़ा जोश से आपन विचार बता रहल बा। चरचा में सम्मिलित हो रहल बा। चरचा कर रहल बा। आजु-काल्ह फेसबुक आ ट्वीटर खाली टाइम पास के माध्यम नइखे रहि गइल, ई सब एगो सुखद आ सकारात्मक बहस के साथे आपन आ बिराना के विषय में चिंता करे के माध्यम बन गइल बा। लोग एकजुट होके समूह में काम कर रहल बा। 
    अब हम अपना बात के पहिले समूह पर तनी चरचा करे के चाहेब। कई विद्वान लोग समूह के परिभाषित कइले बा। सब ले दे के इहे बुझाला कि समूह में हमेशा एक से अधिका लोग के सक्रियता रहेला। कम-से-कम दू आदमी त रहबे करेला। ऊ मरद-मेहरारू होखे, चाहें सोसल साइट्स के अजनबी मित्र। समूह के विषय में इहो कहल जाला कि ओह सदस्यन के एगो निर्धारित लक्ष्य होला। लक्ष्य के सुभाव अलग-अलग हो सकेला बाकीर बिना स्टेशन के गाड़ी कहाँ रूकी? हर एक समूहन के कुछ आपन मर्यादा आ नियम होला। कवनो जरूरी नइखे कि ई सब लिखले होखे। भावात्मक नियम भी बहुत होला। जइसे अपना बाप-माई के सामने के तरे व्यवहार करे के चाहीं, अपना जमला के सामने के तरे आ अपना गोतिया-दमाद के सामने के तरे। एकरा साथही समूह अलग-अलग सुभाव के आदमी के संकलन से बनल एगो सामाजिक इकाई बन जाला। अपरिचित आदमी भी समूह में रहि के एक दूसरा से जुड़ जाला। एक-दूसरा के समुझे-बुझे लागेला।
    सामाजिक समूहन खातीर कहल जाला कि एहमे तनीका ढेर स्थिरता रहेला काहें कि सामाजिक चिंतन आ सोच पर बनल रहेला। वइसे त एकर सदस्यता अपना इच्छा पर रहेला बाकीर सामाजिकता में कई बेर दोसरा के इच्छा के भी अपनावे के पड़ेला। इहो देखल जाला कि जब दोसरो के इच्छा स्वीकारे के गुन आ जाला तबे सामाजिक सरोकार में बढ़ोत्तर होला। हमरा नजर में एक आदमी के तुलना में समूह के शक्ति ढेर होले। कई बेर देखल जाला कि जवना काम के अकेले हम नइखीं कऽ सकत, समूह के शक्ति से ऊ चट् लिट्टी पट भंटा हो जाला। कहल जाला कि हम अगर कवनो समूह से जुड़ल बानी तऽ ओकरा के दुरूस्त राखे के हमार नैतिक आ भावात्मक दायित्व बा।
    हम ऐतना बकवास खाली ई बतावे खातीर करऽ तानी कि आजु-काल्ह सोसल साइट्स पर समूहन के भरमार बा। हम बहुतेरे लोग के अपना मित्र सूची में रखले बानी आ लोगो हमरा के रखले बा जेकरा बारे में ना हम ढेर जानऽ तानी, ना ऊ हमरा बारे में जानऽ ता बाकीर बहस में हम सभे सरीक बानी जा। ओह बहस से बड़ा आनन्द आवेला। समूह में जब एकता के शक्ति के साथे बिना अमरख, बिना ईष्या आ बिना कवनो मलाल रखले उन्मुक्त बहस होई तब केहू के ना केहू के कल्याण होखबे करी। 
   ह्वाट्स एप्प आदि पर हम कइगो ग्रुप माने समूह से जुड़ल बानी। हमहूँ एगो ग्रुप बनवले बानी। कइगो तऽ हमरा प्रोफेशन से जुड़ल हमरा कार्य-स्थल के ग्रुप बा, तऽ कइगो पारिवारिक आ कइगो मैत्रिक। देश-परदेश में रहे वाला भाई लोग कइगो ग्रुपन से जुड़ के अपना-अपना गतिविधि से एक-दोसरा के अवगत करावत रहेला लोग। ओहि में हमार एगो सँघतिया बाड़े - भाई अशोक मिश्रा जी। बड़ा ही मेहनती आ बड़ा ही लायक मनई हवें। चेहरा पर हमेशा चवन्निया मुस्की रहेला आ जहाँ ले हम अनुभव कइले बानी, करेजा में समुन्दरो से गहिरा प्रीति। तऽ हमार अशोक भाई एगो ग्रुप बनवले बाड़े ‘भोजपुरी बोली’। बड़ा निमन-निमन पोस्ट शेयर होत रहेला। कल्हिया ओहिपर एगो मेम्बर बाड़े - नील कमल सिंह। रउरा उनकरा के समुझ सकेनी कि ऊ अपना नामवा में ‘नील’ के बदले ‘निल’ लिखेले। खैर, तऽ तनी उनकर पोस्ट देखीं। उनकर पोस्ट एगो लिंग के साथे रहुवे। हम काॅपी करे के प्रयास करऽ तानी - ‘भइया हम निल कमल सिंह, ‘पिय ऐ बलमुआ ढोड़ी में बियर डाल के’ अपार सफलता के बाद हमार नया एल्बम बेव म्यूजिक से आ गईल बा। हमार एल्बम के नाम बा रंगबाज भेजपुरिया। आप लोग से अनुरोध बा कि आप लोग हमार गाना डाउनलोड कर के जरूर सुनी। हमार आशा ना विशवास की आप लोग के जरूर पसंद आई।’ ई उनकरे शब्द ह, खाली तनी मात्रा हम ठीक कइले बानी।
   भाई उनका पहिला अलबम के नाम पढ़ के हम पूछूईं कि ‘भोजपुरी काहें फूहड़ कहा तिया?’ त कवनो उत्तर ना देहूँवे। ग्रुप से अलगे, अकेले में हमरा के हाय! कह के चैटिंग करे के चहूँवे। हम बहस ग्रप में करे के चाहत रहुँई। हमरा लागता कि भोजपुरी के पहिचान से फूहड़ता के मइल हटा के ओकरा असली गंध से परिचय करावला में ही भलाई बा। पता ना अइसन गाना लिखे वाला अपना ज्ञान के प्रमाण काहें दे ता लो। 
    हम तऽ अपना लेख के माध्यम से अइसन अश्लील गाना लिखे वाला, गावे वाला आ गवावे वाला के धिक्कार दे तानी कि ई व्यवसाय कइला से अच्छा बा सुई-बटन लगावल जाय। जूता सिअल जाव। मैला उठाल लाय। ना त अगर ढेर भँड़ुआ बने के लालसा बा त भाई एक बेर अपना घरवो मे अपना माई-बहिन-बेटी के आपन गीतिया सुना ल लोगीन।
    तनी विचार तऽ करीं आ बताईं कि का भोजपुरी में सुन्नर गीतन के कमी बा? बाकीर अश्लील गीतन के कारण सुन्नरता पर अपमान के चादर चढ़ गइल बा। अपना भोजपुरी के आदर के उच्चासन पर फेर से विरामान करे के खातीर हर हाल में, हर कीमत पर, हर ठाँव में, हर ताकत से विरोध होखे के चाहीं। अगर विरोध नइखे होत तऽ अपने गोड़ पर अपने टाँगीं मारला के बात बा।
    हमार एगो भाई सौरभ श्रीकांत जी भी एगो ग्रुप बनवले रहलें। हमरो के जोड़ले रहले। हम देखनी कि बेचारू पहिले त सबसे राय ले के जोड़ले बाकीर बाद में लोग एक-दोसरा के अनाप-सनाप मैसेज भेजे लागल लोग। एक जने तऽ फूहड़ता के हद कऽ देहले आ चर्चा कइला पर बेशर्मी के हद। हमके हिरदय से मलाल बा कि हम ओह ग्रुप से निकल गइनी। 
    तऽ सबसे दसो नोह जोड़ के विनती बा कि कवनो हाल में अश्लील गीतन के मत स्वीकारीं। विरोध के आवाज तऽ उठाईं। जरूर रउरे जइसन दू-चार बहादुर योद्धा मिलिए जइहें। हर ग्रुप (समूह) के एगो शक्ति होला। समूह बने त ओह शक्ति के भी परिचय मिले के चाहीं। समूह में एकजुटता रहे के चाहीं। चाहें केहू होखें, अश्लीलता के विरोध होखे के चाहीं।
    सोसल साइट्स के समूहन में बाकी सब कुछ देखे के मिलेला बाकीर एकता के कमी मिलेला। जब समूह में एकते ना रही त शक्ति कहाँ से आयी। त, सभे जवना भी समूह से जुड़ल बा, ओह समूह के शक्ति बने। शक्ति सकारात्मक आ सृजनात्मक पक्ष खातीर। शक्ति पक्षपात पूर्ण बहस खातीर। शक्ति अपना भाषा के विकास खातीर। हमरा विचार से त जवना समूह में एकता के, अपनत्व के आ साँच के शक्ति नइखे, ओह समूह में अपनहीं ना रहे के चाहीं। समूह के विस्तार त सोसल साइट्स के दू-तीन जने से ले के लाखन लोग के हो सकेला। समूह खाली इकट्ठा करे के नाम ना ह, ई गतिशील आ सक्रिय कार्यकलाप के चिन्हा ह। एक समूह के आधार भौतिक निकटता ना, ई त सामूहिक अंतःक्रिया के आत्मा के आधार पर होखे के चाहीं। इहो साँच ह कि समूह के गतिशीलता अपना-अपना रूचि पर होला। भाई जब रउरा भोजपुरी के नाम पर, भोजपुरी के गौरव दिलावे खातीर समूह बनावत बानी त ओहपर अमल करीं। ना त भोजपुरी भाषा त ‘भाषा’ आ ‘बोली’ के बीचे में कई बेर ‘अन्हरा-थोपी’ खेलत आजुओ अपना सम्मान खातीर तरसत बिआ। लोग समूह के नाम पर गुट के ईनार में घेराइल बा आ आपन-उनकर कहि के गाड़ी सरकावता बाकीर भोजपुरी खातीर सचहूँ कुछ हो ता का?

                                                    ......................................
                                                                        - केशव मोहन पाण्डेय 
  

शनिवार, 6 जून 2015

कुतर्क मत करीं


रउआ से आग्रह बा कि तनी एक मिनट के समय दीं -
     "सुना है मैगी मे थोडा रासायन बढ गया, इसलिए उस पर बैन लगेगा....
     तम्बाकू, सिगरेट और शराब मे सरकार को, उम्र बढाने के कौनसे
     विटामिन, प्रोटीन दिखे जिनके लाईसेन्स वो रोज जारी कर रही है.".

    लोग मैगी पर बैन के विरोध में ऊपर वाला तर्क दे ता आ खूब व्हाट्स एप्प करता। हम अपना ओ भाई लोग से बतावे के चाहत बानी कि ‘बस दो मिनट’ में तैयार होने वाली मैगी हमारा-रउरा आपके नौनिहालन के सेहतो के दांव पर लगा सकता। खाद्य संरक्षा आ औषधि प्रशासन (एफएसडीए) हाले में बाराबंकी के एगो मल्टी स्टोर से मैगी के नमूना ले के ओकर जांच कोलकाता के रेफरल लैब से करवलस। जांच में ऊ नमूनवा फेल हो गइल आ ओहमे मोनोसोडियम ग्लूटामेट नाम के एमिनो एसिड खतरनाक मात्रा में पावल गइल। मैगी में प्रयोग होत ओह रसायन एमएसजी के मात्रा के मानक 2.5 राखल गइल रहे आ कंपनी 17.65 प्रयोग करत बिआ जवन बचवन खतिरा बड़ा नुकसानदायक बा। एफएसडीए एक्ट के तहत मोनोसोडियम ग्लूटामेट के प्रयोग होखे वाला समानन के रैपर पर एकरा मिलवला के बात साफ-साफ दर्ज करे के होला। सातवे इहो लिखे के होला कि 12 साल से कम उम्र के बच्चा एकरा के कवनो हाल में  प्रयोग ना करी। एमीनो एसिड श्रेणी के मोनोसोडियम ग्लूटामेट केमिकल वाला खाए के सामान लइकवन के सेहत के दांव पर लगावत बा। एह केमिकल के खइला से बचवा खाली एकर एडिक्ट ना होइहें सों, बाकिर दोसरो चीजें खाए से नाक-मुँह सिकोडावे लागले सों।  मैगी खाये वाला लइकन के शारीरिको विकास पर भी असर पड़ेला। मोनोसोडियम ग्लूटामेट लइकन के पचावे के क्षमता खराब क देला। एहसे लइकन के पेट में दर्द, रोटी-सब्जी, फल खइला पर उल्टी आवे लागेला, देह में सुस्ती बनल रहेला, गर्दन के पाछे के नस के कमजोर भइला से स्कूल के बस्तवो के बोझा ना उठा पावे ले सों आ याददाश्त कमजोर भइला के शिकायतो हो सकेला।  
    जहाँ ले उपरोक्त उत्पादन के बात बा, ई त सभे जानेला कि तम्बाकू, सिगरेट आ शराब स्वास्थ्य खातीर हानिकारक ह। लोग त एह नशा के जानबूझ के  अपनावेला। दोसर बात ई कि लोग भले अपने आप नशा में डूब जाला बाकिर अपना सन्तानन के दूर राखेला। आ रहल मैगी के बात, त ऊ त हमनी के खुदे अपना लइकवन के देनी जा। तब हमके उपर्युक्त तर्क फालतू आ अपनाही से ही बेमानी लागेला। एह हाल में तम्बाकू, सिगरेट आ शराब आदि पर 60 प्रतिशत हिस्सा में वैधानिक चेतावनी लिखल रहेला आ एहिजा त नेस्ले कंपनी आपन गलतिओं नइखे मानत। 
   ओकरा बादो ई त लइकन के सवाल बा। सोचे के त पड़बे करी। सोचिना। बढ़िया तर्क के साथे सोचीं। कुतर्क छोड़ दीं।  
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                                                                - केशव मोहन पाण्डेय