शुक्रवार, 25 मार्च 2016

भकोल


(लघुकथा)

    अबकी बेर परधानी के चुनाव के घोषणा होते अंबरीश बाबू के पसेना छूटे लागल। उनका बुझा गइल रहे कि अबकी बेर परधानी के चुनाव माथे नइखे लिखाइल। पैर के नीचे से धरती सरकत बुझाइल। चार बेर से तऽ दूनो हाथ घीवे में चभोरात आवत रहे, बाकी गाँव के विकास जस के तसे रहे। अबकी बेर देश आ राज्यन के चुनावन के सथवे गँऊवो में ंझाविकास के चर्चा रहे।
   अंबरीश बाबू बेयार देख के व्योहार बदले में माहीर रहले। देखले कि परसों चुनाव हऽ आ दशा खराब हो ताऽ तऽ दिशा बदल लिहले।
    अभीन सँझवत के बेरा भइल रहे। कई दुआरन पर संझा के दीया धराऽ गइल रहे। कुआर के उमसल साँझ में कई जने धुँअरहा कऽ के मच्छरन से बचे के जुगुत में लागल रहले। गाँव के दखीनही टोला में तऽ दिनवे में बँसवार के कारने अन्हरिया रहेला, साँझ के बढ़ गइल रहे। रामबरन के दुआर पर तनी ढेर झोहले रहे।
रामबरन अंबरीश बाबू किहाँ दूनो बेटा-बेटी आ मेहरारू के साथे मजूरी करेलन। पूरा परिवार दिन भर हाथ-पैर मारेला, तब जा के साँझ के चूल्हा बरालाऽ। तब जा के हाँडी पर परई बाजेला।
   रामबरन अबके दू किलो आटा ले के घर में पइसले हवें कि अपना आदमीयन के साथे अंबरीश बाबू दुआर पर जुम के हाँक लगवले। 
   रामबरन के ई उल्टगंगा के लहर ना बुझाइल - ‘का रामबरन काका, अरे मर्दवा, कहवाँ लुकाइल बाड़ऽ?’
   निकलते हाथ जोड़ले, - ‘ना मालिक, बाजारे गइल रहनी हँऽ। अबके आवते बानी।’
‘काऽ खरीददारी भइल हऽ हो?’
‘चुल्हा बारे के बेरा होत रहल हऽ, आटा लेअइनी हँऽ।’
‘तऽ का बिचार बाऽ? अकेले-अकेले? रोटी बनवावऽ। आज हमरो पत्तल ईंहवे बिछी।’
    एतना सुनते रामबरन धधा गइले। बुझाइल तऽ केहू के कुछू ना, बाकीर सभे सेवा में लाग गइल। ..... देखते देखत सगरो गाँव में ई शोर हो गइल कि अंबरीश बाबू भले कवनो काम कइले चाहें ना, छोटका-बड़का सबके बराबर बुझेले। आज रामबरन के घरे एके पाँती में रोटी-चटनी खइले हँवे।
    समय बितल आ जब चुनाव के परिणाम आइल तऽ ऊ रोटी-चटनी कमाल कऽ देहले रहे। अंबरीश बाबू फेरू से परधान बन गइल रहले। रामबरन अंबरीश बाबू के चुनाव देखले तऽ दुआर पर खटिआ बिछावे लगले। जुलूस ओनहे से लौटे लागल तऽ रामबरन पाछे-पाछे धावे लगले। राजेन्द्र जब रामबरन के देख के अंबरीश बाबू के बतवले तऽ ऊ गमछी से आपन नाक दबावत एतने कहले, - ‘अब का करे के बाऽ?’
ई बतिआ रामोबरन सुनले तऽ भकोल लेखाँ मुँह बवले ताकते रहि गइले।
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                                                           - केशव मोहन पाण्डेय

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