शुक्रवार, 25 मार्च 2016

उघटा-पुरान

(लघुकथा)
    होत फजीरे रमेसर ब फूलपतिया के दुआर पर जा के ओकरा माई के बोलवली। उनका कान के लगे मुँह क के कहे लगली, - ‘बहीन जी, फूलमती के उमीर अब उठान पर बाऽ, अब तनी डेग धरे के शउर सिखावल करीं।’
‘का भइल?’
‘अबके रघुवीर बाबा के छोटकू के साथे बतिआवत देखनी हँऽ।’
‘त का हो गइल। दूनो संघहीं पढ़ेले सों। आज इम्तहान बाऽ, कुछ बात हो होई। .... एहीमें तू भर मुँह माटी काहें लेत बाड़ू?’
    रमेसर ब के त मुँहे माहुर हो गइल। भनभनइली, - ‘सचहूँ कहल बा कि साँच के धाह बड़ा तेज होला। ....... परपरा गइल होई।’ - कहि के चले के भइली तले बहीन जी के बरमंडे जरि गइल। लपक के उनकर झूला फारे के चहली बाकीर अँचरवे हाथ में आइल। - ‘का कहलू ह? ..... हमरा के साँच सुनावे से पहिले आपन इगुआर-पिछुआर देख लऽ। ....... चलनी हँसे सूपा के, जवना अपनहीं छिहत्तर गो छेंद बा।’
    बात बढ़े लागल। आवाजो तेज हो गइल। अड़ोेसियो-पड़ोसी लहार लेबे लगले। हमहूँ जुम गइली। रमेसरो ब जम गइली, - ‘ए बहीन जी, सहऽ तानी तऽ मुड़ी पर मत चढ़ऽ। ..... तहार नइहर-ससुरा दूनो जानऽ तानी। ...... तहार बाप कई बेर पछीम टोला में पकड़ाइल बाड़े।’
‘रे फूलमतिया, हई ना देख रेऽऽ! .... तनी लेअइबे जरत लुआठी कि एकर मुँहवा झऊँस दींऽ। .... रे हई हँसतिआ! ... एकर माई पता ना कवना-कवना घाट के पानी पिअलस, तब जाके एकर नटूरा भाई भइलस, आ ई हमरा के हँसतिआ, .................
    हमार आँख सबके देखत रहे बाकीर कान खाली ओही दूनो जने के सुनत रहे। ओह लोग के उघटा-पुरान सुनत रहे। दुनिया आगे बढ़ल तऽ कई चीज छूट गइल। आजुओ हमार गाँव अपना प्रीत-अमरख, सेवा-सहयोग आ लड़ाई-भलाई में जीअत ओही तरे अपना मस्ती में जी रहल बा।

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                                                                  - केशव मोहन पांडेय 

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