शुक्रवार, 25 मार्च 2016

चुनाव


(लघुकथा)

    परधानी के चुनाव हो गइल रहे। रामजी मास्टर रिटायर हो गइल रहले, बाकिर अभीनो कुछ करे के चाहें। सोचले कि ‘आज ले ईमानदारी आ साँच के डगर पर चलल बानी, लोग जँहवे देखेला, आदरो देला, तऽ वोटवो देबे करीऽ।’ इहे गुणा-भाग लगाके चुनाव लड़े के मन बना लेहले। 
    राय-मसौदा खातिर सबसे पहिले अपना परिवरवे में बैठक कइले। भाई-भतीजा, मरद-मेहरारू, सबके बइठवले। सबके ईऽ बिचार रहे कि मास्टरी कइल आ चुनाव लड़ल दूगो बात हऽ। चुनाव लड़ला में आजु ले जवन पेट काट-काट के पइसा बचल बा, ओकर बरबादी। धरमपत्नी कहली कि ‘कुछ करे केऽ बड़ा शौक धइले बा तऽ दू-चार गो ट्यूशन पकड़ लीं। दू पइसा अइबो करीऽ।’ घरहीं में फूटमत देख के रामजी मास्टर मन मार लेहले। जब आपने ना साथ दी तब बिराना के कवन भरोसा। अब उनकर मन बदल गइल। सोचले कि कवनो अइसनका उमीद्वार के साथ दीं, जवन नेक होखे। जवन मन से गाँव के भलाई करे के चाहे। जेकरा में गाँव के सेवा के साँचका भाव होखे। 
    पता चलल कि अबकी बेर पाँच जने परचा भरले बाडे़। पहिलका उमीद्वार हवें छत्तर सिंह। दखिनही टोला के सभे उनसे डेरालाऽ। दस-बारे जने के दुआर से गोरूअन के खोलवा चुकल बाड़े। भले केहू उनका से कहें चाहें ना, ई बात दोसरो गाँव के लोग जानेला। 
    सुने में आइल हऽ कि छेंदीओ चुनाव लड़त बाड़े। लोग के घर आ गुमटी में सेंध मारत फिरसऽ। ओही अपराध में दू साल पहिले ले जेल में रहले हँऽ। अब रोज साँझे-बिहाने उत्तर टोला में बैठकी जमावे ले। सगरो बाबू लोग साथ देबे के तैयार बाऽ।
    तीसरका उमीद्वार बाड़े अकलू। फिलिम लेखां सभे उनका के अकलू दादा कहेला। माने एकदम छूटहा साँढ़। सभे कहेला कि एक बेर ऊ एगो मलगर व्यापारी से सगरो पइसा लूट के ओकरा के नदी में ढकेल देहले। चार दिन बाद ओकर लाश उतराइल रहे।
    अगिला उमीद्वार सुबोधकांत जी। काॅलेजे के बेरा से नामी गुंडा। सामने कट्टा धऽ के परीक्षा देस। एक साल उड़ाका दल पकड़लस तऽ एगो के गोली मार देहले। पढ़ाई तऽ बंद हो गइल, बाकिर चोरी-डकैती के गिरोह बना लिहले। पिछलो बेर चुनाव लड़ल रहले बाकिर दस-बारे वोट से हार गइले। सुने में आवता कि बिहने ऊऽ रामजी मास्टर से आशीर्वाद लेबे अइहें।
    पाँचवा उमीद्वार सुधीर तिवारी। अपना गाँव के पहिलका इंजीनियर। एगो पढ़ल-लिखल नौजवान। नौकरी छोड़ के गाँव के सेवा खातिर घरे आऽ गइले। पहिले तऽ एगो पुरान साइकिल पर घूम-घूम के छोट-मोट ठेकेदारी करस। दिने-दिन ठेकेदारी अइसन चमकल कि आठे साल में जिला में उनकर एगो नाम बाऽ। धन-दौलत अफरात हो गइल। बड़का दुआर पर तीन-चार गो चरपहिया बाऽ। पिछला साल धोबीघटवा पार करे खातिर पुल बनववले। पहिलके बरसात में ढह गइल। जाँचो बइठल बाकिर लछमी के कृपा से सब साफ-सफाई हो गइल।
   रामजी मास्टर बइठले-बइठल एगो लमहर साँस लिहले। अब उनका बुझाइबे ना करे कि ऊ समर्थन खातिर केकर चुनाव करस। 
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                                                                       -केशव मोहन पाण्डेय 

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