अस मन बुझीं
हाल गाँव के
निमिया के
छुवत बयार के
पिपरा तल
लहरत छाँव के।
हुलस-हुलस
मन मोरवा नाचे
तोताराम
रामायन बाँचे
उछल उछल के
गुद्दी देखावे
कलाकारी निज पाँव के।
राग अलापे
कोइलर रागी
महोखा बाबा
बनल वैरागी
बिपत कटे ना
आजुओ कहीं से
पपीहा के नेहिल भाव के।
भाँति-भाँति के
चिरई-चुरुंग, जन
भाँति-भाँति के
सबके चिंतन
भाँति-भाँति
उपचार मिलेला
भाँति-भाँति के घाव के।
गइल राग-रंग
भइल छलावा
पइसल रोग,
बेअसर बा दावा
धिक्कारे मन
मइल देख के
मनई-हीन अलाव के।
-------------------
- केशव मोहन पाण्डेय
हाल गाँव के
निमिया के
छुवत बयार के
पिपरा तल
लहरत छाँव के।
हुलस-हुलस
मन मोरवा नाचे
तोताराम
रामायन बाँचे
उछल उछल के
गुद्दी देखावे
कलाकारी निज पाँव के।
राग अलापे
कोइलर रागी
महोखा बाबा
बनल वैरागी
बिपत कटे ना
आजुओ कहीं से
पपीहा के नेहिल भाव के।
भाँति-भाँति के
चिरई-चुरुंग, जन
भाँति-भाँति के
सबके चिंतन
भाँति-भाँति
उपचार मिलेला
भाँति-भाँति के घाव के।
गइल राग-रंग
भइल छलावा
पइसल रोग,
बेअसर बा दावा
धिक्कारे मन
मइल देख के
मनई-हीन अलाव के।
-------------------
- केशव मोहन पाण्डेय
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें