मंगलवार, 10 मई 2016

ऊ कवि हवन



ऊ कवि हवन
कविता के नाम पर
फूहड़ता परोसे ले
दारू पी पी के
दोसरा के कोसेले
मंच के पहिले
भाव तय करेले
साहित्य आ समाज के
दूनो के क्षय करेले
ताली बटोरे खातिर
ताल-तुक तुरेले
गलती निकालीं त
उल्लू जस
आँख गुड़ेरे ले
कहेले
हर ठाँव पहुंचे वाला रवि हवन।।
श्लील-अश्लील के
कवनो पैमाना ना
उनका खातिर
उनका बिना
कवनो
काव्य के जमाना ना
बोलत बोलत मुँहवा से
फेन फेंके लागेले
काव्य-कला चर्चा पर
हाथ जोड़ भागेले
अइसन कविताई पर
बज्जर पड़ो
आग लागो
कविता के सेवक
जागो त
अब्बो जागो
जागे कविकुल कि
सारा जहान जागे
सृष्टि के कण कण
धरती आ आसमान जागे
सथवे सुतल मन
आपन हिन्दुस्तान जागे
जागे जब सगरो त
तनि झकझोर जागे
बुद्धिआगर त जगबे करे
अबकी मथमहोर जागे
तब्बे त ओह कवि के
सृजन संसार जिंदा रही
कवि के कविता रही
ऊ कलमकार जिंदा रही
जिंदा रही उहे
जे संचहू साहित्य के काम करी
देह कबो मर जाई
बाकीर अक्षर अक्षर नाम करी
सबके करेजा बीच
बनी नेह के भवन
तब दुनिया कही
ऊ कवि हवन।।
---------------
- केशव मोहन पाण्डेय

2 टिप्‍पणियां: