शनिवार, 30 सितंबर 2017

कइसे कह दीं रावण जर गइल?


कइसे कह दीं रावण जर गइल?

हिया हिया में पइसल छल बा
साँस साँस में अनघा मल बा
डेग डेग पर झूठ के रिश्ता
प्रीत में बड़का लहास बर गइल।

तन से मन के चाम बा मोटा
ढिमले जस बिनु पेनी के लोटा
दोसरा के दुमुँहा बोलेला
जवना के अपने दस सर गइल।

जबले दंभ, व्यभिचार के खेल बा
उज्जर हिया में करीका मेल बा
जबले जरे मन देख दूसर के
तब ले कहाँ पाप-घट भर गइल?

ज्ञान के गरिमा रहे भरपूर
पर अभिमान-मद में चूर
आदर-सम्मान के भाव न जाने
मौन के बुझे सभे डर गइल।

जब मन में साँचका राग जागी
ओह दिन सचहूँ रावण भागी
'हम' 'तुम' के सब भेद मेटल ना
नाचे जइसे जिनगी तर गइल।
               **
केशव मोहन पाण्डेय

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