मंगलवार, 12 जुलाई 2016

माई


अँचरा से ढाप के
पिया के
अक्षय कोष से अमरित
माई पोसली
आस के सीता
पढ़ली
विश्वास के गीता
बेटा बड़ हो के
कुछु त करीहें
ना ढ़ेर
त थोरहूँ
दुःख त हरिहें
पूत के पाँख जामते
धरती से पाँव उठ गइल
पहिले त
परब-त्यौहारन निअर आवस
अब सचहूँ गाँव छूट गइल
आ माई
अँचरा में मुँह लुकवा के
धीरे से लोर पोंछेली
बेर-बेर
अपना दूधवे के कोसेली
कि ईहे खार हो गइल
कि हमरा कवल-करेजा के
हमरा बाबू के
अइसन व्यवहार हो गइल।
--- केशव मोहन पाण्डेय ---

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें