शनिवार, 25 जून 2016

छुटि गइल घरवा दुआर

बड़ होके हमहूँ कवन धन पवनी
उलटे आपन लइकइयाँ गववनी
मिलल आर न पार।
छूटल, छुटि गइल घरवा दुआर।।

बाबुजी ना मारे ना छोड़ावे ले भैया
सचहूँ बिसुकि गइल ललकी गैया
दुअरा के इनरा सूखल, सूखल बगइचा
बरम बाबा सूखले, मिले नाहीं छैया।
टूटी गइल नेहिया के तार।।

रेंगनी के काँट से ना जीभीआ छेदाला
भौजी के बहिया ना गोदना गोदाला
ओका बोका छुटि गइल चिऊंटा के झगड़ा
रोए के रहनी तल्ले अँखिये खोदाला।
छूटल सब अधिकार।।

ठाढ़ी टीका छूटल छूटल ओल्हा पाती
कुरुई ना भूजा देली ना बान्हें माई गाँती
अब खाली याद बाटे नुन तेल लकड़ी
उमिरिया चोरवलस बचपन के थाती
कइलस निरइठ उघार।।

नजरी ना लाज बाटे जियेनी उधारी
घरवा के काम तब लागे बेगारी
कोठा कोठा घुमे मन चैन नाही मिले
ऊ भाग्यशाली बाड़े जेके बा बाप महतारी।
छूटल माई के अँचरा के प्यार।।
----- केशव मोहन पाण्डेय -----

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