सुनी ये पंचे बारे महीना में
कवन-कवन फलवा खायेके।
चइत में नीम पत्ता, बैसाख के बेली
जेठ में नेबुआ-शिकंजी पीहीं
लमहर उमिरिया ले रउरा जिहीं।
आषाढ़ में दही, सावन में मध
भादो में छोहाड़ा के सेवन करीं
कवनो बेमारी से काहें डरीं।
कातिक में मुरई, अगहन में तेल
पूस में दूध के पीअल करीं
रोग-बेयाधी से काहें डरीं।
माघ में घीव, फागुन में रहिला
दादा-परदादा के बतिया मानी
आपन जिनगिया अमोल जानी।
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केशव मोहन पाण्डेय
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