रविवार, 21 अगस्त 2016

हमार बाबुजी


खम्हा
थुन्ही
बाती
रूप पतहर के
हमार बाबुजी
रहनी
सगरो आधार
हमरा घर के।
करम करत
असरा के सुग्गा
पोस-पोस
हमार बाबुजी
कान्हे बइठा के प्रतिष्ठा
पैदले चल दीं
कई कोस।
दिन-रात
सम्बन्धन के धोती सँइहारत
ऊँहा के
कई बेर काम चला लीं
चटनी आ रोटी से
आ माथे के पसेना पोंछ
निहाल हो जाईं
साँचो कहत बानी
तबो ऊँहा के
दुःख ना बताईं।
समय से ताल ठोकत
ललकारत समय के
गतिशील रहनी
हम जानत बानी
कि अंत बेरा ले
का-का ना सहनी
ऊँहा के
बिपत के विष
गटइए में रोक लीं
परिवार
रिश्तेदार
पट्टीदार
सबके सुख बदे
कवनो हाल में
समय से
ताल ठोंक लीं
हम ई सोंच के सुख पाइले
कि ऊहें कारने
हमार नाव बा
दुकाहें हमरा लागेला
कि हमरा मुड़ी पर
आजुओ बाबुजी के
असीस के छाँव बा।
..................
- केशव मोहन पाण्डेय 

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