रविवार, 26 जून 2016

घरे चलि अाव पिया

हमरा असरा के पथरा मत गलाव पिया
घरे चलि अाव पिया ना।

घेरे बदरा घनघोर काँपे गतरे गतर मोर
अाके नेहिया के रजइया ओढ़ाव पिया
घरे चलि अाव पिया ना।

कोइली बोलेले टिभोली, मारे हियरा में गोली
झोली भर के दवाइया लेअाव पिया
घरे चलि अाव पिया ना।

धइलस सावनी फुहार, भींजल तन के तार-तार
हउव तूहीं मोर अाधार ना रिगाव पिया
घरे चलि अाव पिया ना।

जानतानी मजबूरी बाटे नोकरी जरूरी
दूरी हमरो कबो त मेटाव पिया
घरे चलि अाव पिया ना।
---- केशव मोहन पाण्डेय ----

शनिवार, 25 जून 2016

छुटि गइल घरवा दुआर

बड़ होके हमहूँ कवन धन पवनी
उलटे आपन लइकइयाँ गववनी
मिलल आर न पार।
छूटल, छुटि गइल घरवा दुआर।।

बाबुजी ना मारे ना छोड़ावे ले भैया
सचहूँ बिसुकि गइल ललकी गैया
दुअरा के इनरा सूखल, सूखल बगइचा
बरम बाबा सूखले, मिले नाहीं छैया।
टूटी गइल नेहिया के तार।।

रेंगनी के काँट से ना जीभीआ छेदाला
भौजी के बहिया ना गोदना गोदाला
ओका बोका छुटि गइल चिऊंटा के झगड़ा
रोए के रहनी तल्ले अँखिये खोदाला।
छूटल सब अधिकार।।

ठाढ़ी टीका छूटल छूटल ओल्हा पाती
कुरुई ना भूजा देली ना बान्हें माई गाँती
अब खाली याद बाटे नुन तेल लकड़ी
उमिरिया चोरवलस बचपन के थाती
कइलस निरइठ उघार।।

नजरी ना लाज बाटे जियेनी उधारी
घरवा के काम तब लागे बेगारी
कोठा कोठा घुमे मन चैन नाही मिले
ऊ भाग्यशाली बाड़े जेके बा बाप महतारी।
छूटल माई के अँचरा के प्यार।।
----- केशव मोहन पाण्डेय -----