सोमवार, 5 अक्तूबर 2015

ए अरिआर का बरियार

     आजु जीउतिया हऽ। जिउतिया के शुद्ध नाम ह जीवित्पुत्रिका माने जे जीअत पुत्रन के माई होखे। कुआर महीना के अन्हरिआ के अष्टमी के ई तप-पर्व पड़ेला। माई लोग अपना लइकवन खातिर निर्जला व्रत बाऽ लोग। जीभ पर एगो बूंद पानी ना। बेटा खातिर ई व्रत एगो तपस्या कहल जाला। आजु एह तपस्या के अवसर पर हमके हमरा माई के ईयाद आवता। भोरहरिए से माई के ईयाद आवताऽ। आज सभे सरगही खइले होई। हमार मेहरारूओ खइली हऽ। ना ऊ कबो उठावेली आ ना हम उठेनी। बाकिर हमार माई! ..... जबले हम गाँवे रहि के पढ़नी, हर साल हमार माई हमरा के उटावे। बाबूजी मना करते रहि जासु, बाकिर माई जिद्द कऽ देस। घर के सबसे छोट लइका, उठे ना दीं। उठावस। ओहि बेरा दतुअन करवावस आ अपना सथवे बइठा के दही-चिउड़ा के सरगही खिआवस। आजु अपना घरनी के देखनी हँ तऽ ऊ घरी इयाद आवे लागल हऽ आ इयाद आवे लागल हऽ कि आजु जीउतिया हऽ। बेटा के जुग-जुग जीए खातिर माई के व्रत।

     पुत्र के दीर्घायु के कामना के व्रत हऽ जीउतिया। नहाय खाय के बाद आज औरत लोग के निर्जला व्रत चल रहल बाऽ। महतारी के ई तपस्या तऽ संतान के दीर्घायु आ रक्षा खातिर होला। अगर धर्मशास्त्रन के देखल जाव तऽ ऊँहवो एह व्रत के विशेष महŸव मिलेला। एह व्रत खातिर जन मान्यता तऽ ई ह कि औरत लोग बरियार के दतुअन आ खर करेला। एह व्रत में महतारी लोग जेतने खर करेला लोग, उनकर बेटा ओतने दीर्घायु होले। आजु के दिन तीजहरिया में महतारी लोग नहा-धो के देवी दुर्गा के विविध विधि से पूजा करी लोग। एतने ना, जीउतिया तप-पर्व के  दिने बरियार के पौधा अनगिनत माई लोग के सन्देश-वाहक बनेला। आज के दिने बरियार के पौधा जोह के ओहके चारू ओर साफ़ क के एगो विशिष्ट दूत के जइसन सजा दिहल जाला। महतारी लोग अक्षत-रोली-फूल से पूजा क के भेंट-अँकवार करेला लोग। बरियार के पौधा से भेंट-अँकवार करत सीधे प्रभु राम के सन्देश भेजेला लोग -
                 'ए अरियार का बरियार 
                 जा के राजा रामचन्द्र से कहि दीह 
                 आज फलनवा के माई जीउतिया भूखल बाड़ीऽ।’
   आज हमरो माई जँहवा होइहें, जवना हाल में होइहें, हमरा खातिर उनकर आशीष बरसत होई। आज ऊहो बरियार के अँकवार में भर के कहत होइहें कि जा के पूछऽ केशव मोहन के माई से, कि जीउतिआ भूखल बाड़ी?। 
     अपना संतानन खातिर व्रत-तपस्या करत महतारी लोग तऽ महान बड़ले बाऽ, महान बा आपन लोक-संस्कृति, आपन पहचान। ईमानदारी से कहल जाव तऽ महान लोक-संस्कृति के महन बनवला में महतारीए लोग के महातम बाऽ। प्रभु से प्रार्थना बा कि ओह लोग के आषीश संतानन के साथे भाषा आ संस्कृति के रक्षा खातिर भी मिले।
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                                                                        - केशव मोहन पाण्डेय

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