शुक्रवार, 15 अप्रैल 2016

हम टीचर हईं


लोग हमरा के
धरती पर बोझा कहेला
अब त अति हो गइल भाई
अन्हें ना
मुँहवे के सोंझा कहेला
तबो हम कहत बानी
मथमहोर ना हईं
हमरो आपन पहचान बा
कवनो चोर ना हईं।
हमार इतिहास बहुत पुरान बा
हमरे कारण अर्जुन, कर्ण, एकलव्य,
चन्द्रगुप्त, अशोक आदि के पहचान बा
जी भाई
हम टीचर हईं
हम आज के टीचर हईं
हमरा नियत पर
बट्टा लगा के
चरित्र के चासनी में नहवा के
लोग कहेला
कि कीचड़ हईं
हम त
टीचर हईं।
लोग कहेला
त कहला के परवाह नइखे
ईहो बात सही बा
कि हमरा पक्ष में
केहू गवाह नइखे
तबो हम अपना धून में मगन रहेनी
काहें कि
रोज लइका पढ़ावे नी
नाक पोंछेनी
जब अकेले रहेनी
त बड़ा गर्व से सोचेनी
कि ई त काम ह
महतारी के
हमरा एह काम के निहारी के
का एगो टीचरे चरित्रहीन बा
बाकी सगरो दुनिया जहीन बा?
तब बाबा लोग
जेल में काहें बा
प्रॉपर्टी बढ़ावत बा
निन्यानबे के खेल में काहें बा
कुछ देर बाद
अपनही जवाब मिल जाला
चेहरा हमार खिल जाला
कि हम लइका पढ़ावेनी
आ ऊ दुनिया पढ़ावेले
हम तकदीर बनावेनी
ऊ माथा बिगाड़ेले  
तब्बे एतना भेद बा
चलनी हँसेले सूपा के
जवना में अपनहीं
छिहत्तर गो छेंद बा।
तब खुश हो जानी
अपना नाक पोंछला के काम से
लइका पढ़वला के ईनाम से
कि केहू से त हमरो गुन मिलेला
अरे भाई
ए कीचड़े में त कमल खिलेला।।
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- केशव मोहन पाण्डेय

मंगलवार, 12 अप्रैल 2016

टूट गइल सिकहर

आज होश में नइखीं, मनवा बउराइल बा।
बिना वजह दिमगवा में गोबर घोराइल बा।।
अवघड़ के गढ़ नीयर फइलल बा सपना
हुदबुद्दी बरल जीव-जंगम छछनाइल बा।।
असरा के पथरा पर बोलिया के बुन्नी
दऊँरी के मेहे मन बैला बन्हाइल बा।।
करीआ रात के गोर रोज करेंले चनरमा
सुरुज के दिन, उनके रतिए दिआइल बा।।
बिलारे के भाग से टूट गइल सिकहर
मोछि पर ताव दे मुसवा चोंहराइल बा।।
ताँतल दूधवा से जरिबे करी ओंठवा
बुझता तबो ई बिलरा आगुताइल बा।।
अबकी जाई कहाँ, हमरे के मिलबे करी
पाँच साल से गाँठ में चोरवा समाइल बा।।
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- केशव मोहन पाण्डेय

धोखा

बदलल जमाना
बदलल ओझा सोखा।
मुँह में बाड़े राम
बगल से मिले धोखा।।
असरा के बदरा उड़ल बन के भुआ
पता लागल तब कि जिनगीया ह धुँआ
धधाले धीअरी त
मन करे रोका।
मुँह में बाड़े राम
बगल से मिले धोखा।।

लइकन के मीत-गीत सगरो भुलाइल
नुन तेल लकड़ी के चिंता जो आइल
बुद्धिआगर मनई
बनि जाला बोका।
मुँह में बाड़े राम
बगल से मिले धोखा।।
मँगनी के सतुआ में खाँची भर पानी
केतना बा पानी पुछेली घोघा रानी
अँचरा के ओता में
माजरा अनोखा।
मुँह में बाड़े राम
बगल से मिले धोखा।।
छोड़ावे ला मइल मन झाँवा से मलनी
सूपा के देख देख हँसे लागल चलनी
एके गो घरवा में
छिहत्तर गो मोका।
मुँह में बाड़े राम
बगल से मिले धोखा।।
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- केशव मोहन पाण्डेय