शनिवार, 19 दिसंबर 2015

भोजपुरी भाषा के जय

स्वाभिमान जगाईं अब आपन,
ना काम चली देहला से ज्ञापन।
अब जोर लगा के जय बोलीं
पुरजोर बोलीं, निर्भय बोलीं,
बीस करोड़ भोजपुरियन के
मन में उमड़त आशा के जय।
एक बार जोर से बोलीं ना
भोजपुरी भाषा के जय।।

ई कबीर के निर्गुन हऽ
गुरु गोरक्ष के बानी हऽ
भक्ति भाव के गाथा ईऽ
नेह के निरइठ कहानी हऽ
बुद्ध देव के माटी ईऽ
त्याग-तपस्या के परिपाटी ई
भैंसालोटन के पुल हवे
नन्दनगढ़ के ई लाट हवे
पाण्डव लोग के जे शरण दिहल
ऊऽऽ राजा विराट हवे
बाल्मीकि के आश्रम से फूटत
रामायण के गाथा के जय।
एक बार जोर से बोलीं ना
भोजपुरी भाषा के जय।।

ई भीख नाहीं, ना दान हवे
भोजपुरी हमनी के अभिमान हवे
कइसे सोरठी बिरजाभार भुलाएब हम
सती बिहुला के गाथा गाएब हम
ई आल्हा उदल के ताना तानी
वीर कुँअर सिंह के ईऽऽ बानी
मंगल पाडें के ललकार हवे
माई-दीदीया के प्यार-दुलार हवे
मत एक अंगना में अंगना चार करीं
मत सौतेला व्यवहार करीं
ई त्याग-तप्त दधीची हऽ
हऽ क्रोधी दुर्वाशा के जय।
एक बार जोर से बोलीं ना
भोजपुरी भाषा के जय।।

अब बात कहे में जोश रहे
जोश रहे पर होश रहे
सब भाई बहिनी आपन हऽ
सथवे सब रहे, निर्दोष रहे
वादा कर के दुत्करले ऊ
रहि-रहि के गोली मरले ऊ
फटकार नाहीं, सत्कार चाहीं
हमनी के संवैधानिक अधिकार चाहीं।
आज ले मिलल तऽ दिलाशा बा
अब फेरू जागल अभिलाषा बा
जवना मन में जागल बाटे
ओह मन के अभिलाषा के जय।
एक बार जोर से बोलीं ना
भोजपुरी भाषा के जय।।
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       - केशव मोहन पाण्डेय

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