शनिवार, 4 जुलाई 2015

सात गो हाइकू

श्री आर. डी. एन. श्रीवास्तव जी के हाइकू। व्यंग्य में पगल सात गो हाइकू जवन सोंझे करेजा में चुभता। ई हाइकू भोजपुरी के हाइकुअन के अगिला पाँतियन के सँघतिया बन सकेला। रउरो भोजपुरी के एह लोगन पर नाज़ होई। देखीं ना -
1.त का करतीं
फेनु बेटिये रहे
काहें धरतीं?

2.बाल क खाल
छोड़s अब नोचल
कहs का चाहीं ?

3.बुढ़वा पापी
घुसि जाई चुहानी
चुल्हिये तापी ।

4.का हो गइल?
बेटी भागि गइल?
नीक भइल।

5.बेटा बेचलs
शान! अपमान हs
बेटी बेचल।

6.तुमहूँ हारा
जीता तो हमहूँ ना
दूनू बेचारा ।

7.कवि नादान
उठs, लिखs, हाइकु
चल जापान ।
--------------
    - आर. डी. एन. श्रीवास्तव

एगो मुक्तक

    भोजपुरी साहित्य के शब्दावली में एतना सामर्थ बा कि चिकित्सा विज्ञान के भी शब्द के जामा पहिना सकेला। आईं एगो बहुते पहिले के मुक्तक में श्री आर. डी. एन. श्रीवास्तव जी के द्वारा भोजपुरी शब्दन के चमत्कार देखीं। रउरो अपना भाषा पर अभिमान होई।
---------------एगो मुक्तक-------------
चिक्कन, सुन्नर, सुघर लालमुनिया हऊ।
रूप गुण में पगल रस के बुनिया हऊ ।
आक्सीजन जवनकन के होखबू भले,
बाकिर बूढ़वन खातिर चिकनगुनिया हऊ।।
                     ----------
                               - आर. डी. एन. श्रीवास्तव

'जिनगी से'


    गुरुवर आर. डी. एन. श्रीवास्तव जी अपना हास्य-व्यंग्य वाली कविता के साथे ग़ज़लगोई खातिर एगो आदरणीय हस्ताक्षर हईं। आजु ऊँहा के एगो भोजपुरी गीत हमरा मिलल हs त रउरा सभे खातिर प्रस्तुत बा। गीत वर्तमान के व्यवस्था, दशा आ दिशा के खूबे निमन चित्र बनावत बिआ। रउरो देखीं ना ऊँहा के गीत 'जिनगी से' -
------------'जिनगी से'------------
बहा देलू सोना, बचावे लू पानी।
कवन भोर सपना देखावेलू रानी।।
गदहा क पीठ पर बानर सवार बा
का देखी रोगिन क बैदे बेमार बा
काने से दूनो बहिर बाने हाकिम
जे साँच कहे ऊ झुट्ठा गँवार बा
खूने-पसीना से सींचेलें तब्बो
करेलें किसानी आ पीटेले पानी।
कवन भोर सपना देखावेलू रानी।।
कब्बो संगतियन से भेंट तू कराव
किस्सा कहनई से मन भरमाव
पारी तहार अब बल्ला सम्भार
बिसरल पिरितिया के किरिया धराव
मनवो हमार तब भींज-भींज जाला
रोआवेलू कहि-कहि के बीतल कहानी।
कवन भोर सपना देखावेलू रानी।।
ऊ माई के अँचरा ऊ दादा के छाता
उमिरि ऊहो जब किछु नाहीं सोहाता
जगावल ऊ अँखियन में सूतल सपनवा
लगे कई जनमन के बिछुड़ल बा नाता
ऊ मूँगा लिलरवा ऊ सोना चेहरवा
इ हो देख माथे पर पसरल बा चानी।
कवन भोर सपना देखावेलू रानी।।
-----------------------------------
- आर. डी. एन. श्रीवास्तव