अँगार जरो तहरा हिया
नइखे जो प्यार हो
अँगार जरो तहरा हिया।
ओहि रे अँगारवा में मान-मद जरि जाये
मन के घमंडवा के दससीस मरि जाये
बरि जाये जड़-वनवा में
बरम लुकार हो।।
जरे अंग-अंग, चढ़े रंग दोसरका
एके गो देहिया के लोग ना हो फरका
भले होखे दुश्मनवा
जरि-मरि खार हो।।
छल-दम्भ, भेद-भाव मिली के मेटाव
भाई भोजपुरिया हो मन के मिलाव
जुगुत कइला पर बही
उलटो जलधार हो।
-- केशव मोहन पाण्डेय --
28.10.2018